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ज्ञानी पुरुष (भाग-1)
दादाश्री : अहंकार में दोनों एक ही लाइन में। प्रश्नकर्ता : अहंकार में।
दादाश्री : किसी जगह पर दंगा करना हो तो दोनों तैयार रहते थे। दोनों का खून उबलता था। अरे! यदि कोई बड़ा आदमी किसी दुःखी आदमी को मार रहा होता न, तो उसका तेल निकाल देते थे। यानी खरा क्षत्रियपन था! क्षत्रियपन किसे कहते हैं कि वे रास्ते चलते लड़ाई मोल ले लेते हैं। यदि कोई शक्तिशाली किसी कमज़ोर इंसान को मार रहा हो तो कमज़ोर का पक्ष लेकर बलवान इंसान का तेल निकाल दे, उसके साथ बैर बाँध ले। उसे कहते हैं 'क्षत्रिय!'
सिंह घास नहीं खाता कभी भी प्रश्नकर्ता : बड़े होने के बाद तो आपको बड़े भाई के सामने बोलने की हिम्मत आई होगी न?
दादाश्री : हमारे बड़े भाई रोज़ मुझसे कहते थे कि, 'तुझ में बरकत नहीं है, बरकत नहीं है'। तो एक दिन मैंने उनकी बरकत निकाल
दी।
प्रश्नकर्ता : वह किस तरह?
दादाश्री : वे बहुत मुश्किलों में फँस गए थे। वे राजा जैसे इंसान, और जैसे वे कभी भी नहीं करते थे, वैसे कार्य करने लगे।
___ हमारे बड़े भाई ने एक बार सौ-दो सौ रुपए का कमिशन खाया होगा किसी से। एक व्यक्ति ने कहा कि 'मणि भाई साहब, हमें इतना लकड़ियाँ चाहिए और आप तो कॉन्ट्रैक्टर हो तो इतना भिजवा देना' तो उन्होंने तो भिजवा दी लेकिन कमिशन रख लिया। उन्हें सौ-डेढ़ सौ कमिशन मिला। तब घर आकर कह रहे थे कि 'आज तो उसे लकड़ियाँ भेजकर अच्छा कमिशन मिला, डेढ़ सौ रुपया'।
___ मैंने कहा, 'कमिशन खाया? यह काल बदला! ऐसा करते हो? ऐसा पुरुष जिनकी आँखें देखते ही सौ लोग तितर-बितर हो जाते हैं।