________________
206
ज्ञानी पुरुष (भाग-1)
यह शोभा नहीं देता। आप कैसे इंसान हो? किसके बेटे हो वह तो समझो? हमने जिंदगी भर कभी किसी का कुछ भी नहीं छुआ है और अब आप कमिशन खाते हो?'
किसी ने आपको काम सौंपा है और आप व्यापारी से अपना कमिशन लेते हो? किसी व्यक्ति ने कहा कि 'वहाँ से मुझे ज़रा इतना करवा देना न!' तो पच्चीस हज़ार के माल में हम तीन सौ-चार सौ खा जाएँ। क्या उस व्यक्ति ने ऐसा सोचा होगा कि आप कमिशन खाओगे? क्या इसलिए आपको दिया है? वह तो यही समझता है कि 'ये खानदानी इंसान हैं, हमारा पैसा नहीं बिगड़ेगा!' और ऐसा विश्वासघात ! ऐसा हमें शोभा नहीं देता!
क्या किसी व्यक्ति से कमिशन लेना चाहिए? अगर हमारा दलाली का काम हो तो बात अलग है। दलाल की दुकान हो तब तो कहेंगे कि 'भाई, इनकी तलवार तो आते-जाते दोनों तरफ छीलती है, लेकिन हम ऐसा कैसे कर सकते हैं? आपको तो उन्होंने सब से अच्छे 'मणि भाई साहब' मानकर यह काम सौंपा था कि 'अगर इन साहब को काम सौंपूंगा तो मेरा काम बहुत अच्छी तरह से हो जाएगा'। बल्कि हम तो इतने खानदानी इंसान हैं कि घोड़ा गाड़ी का किराया भी अपने घर से दिया है, असल खानदानी ! ऐसा हमें शोभा नहीं देता है, कमिशन नहीं लेना चाहिए। अगर खाने को कुछ न मिले तो क्या घास खानी चाहिए? 'सिंह के पुत्र हैं'। तब उन्होंने कहा, 'तूने मुझे बताया उसके बाद से समझ में आ गया। यह तो तेरी भाभी ने उस दिन कहा तो तब मुझे वह बात अच्छी लगी'। लेकिन फिर बड़े भाई ने कहा कि 'यह सब कमिशन नहीं रखना चाहिए। अब तू इसे लौटा दे'।
यदि आप खानदानी हो तो ऐसा शोभा नहीं देता प्रश्नकर्ता : यह सब भी नैचुरल है न? आप कुछ करने गए थे
क्या?
दादाश्री : नैचुरल है, खानदानियत है यह तो। उनकी कैसी खानदानियत! मैंने देखी है उनकी खानदानियत कि किसी का भी पैसा