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ज्ञानी पुरुष (भाग-1)
मन वाले थे। जो कुछ भी उनके पास होता, वह सब दे देते थे। अगर रास्ते में कोई कहे कि 'मुझे ऐसा दुःख है', तो वे उसे दे देते थे। बहुत सारा दे देते थे। अगर रास्ते में भी आप कहो कि 'मेरे साथ ऐसा सब हुआ', तो आपका सारा दुःख ले लेते। 'आपका दे दो' कहते थे, ऐसे इंसान थे। यों बहुत दयालु, और प्रेम मय इंसान थे, लेकिन भोले थे बेचारे। कितने ही राजसी लोग बहुत भोले होते हैं, दिलदार होते हैं वैसे इंसान। मैं भोला नहीं हूँ, वे तो शुरू से ही भोले थे। उनसे ज़रा सी भी मीठी बात करो न, तो जो माँगो वह दे देते। मैं नहीं देता हूँ, मैं समझकर देता हूँ।
प्रश्नकर्ता : लेकिन दादा, वह खुमारी (गौरव, गर्व, गुरूर) है।
दादाश्री : बहुत ज़बरदस्त। फिर यहाँ रसोईघर में खाना भी खिलाते थे। कितने ही लोग दोपहर होते ही चाय पीने निकलते थे, यहाँ शहर में भी। अपने मणि भाई के यहाँ ऐसे कई लोग आते थे। वे घर पर चाय नहीं बनाते थे, हं। दो लोग होते थे न, तो एक कहता था, 'तू वहाँ जा, मैं इधर जाता हूँ। तो घर पर चाय नहीं बनाते थे, नहीं पीते थे। अभी तक भी, मैंने तो देखा है यह सब।
मणि भाई तो राजसी इंसान थे इसलिए वे कुछ नहीं कहते थे, कुछ भी नहीं। ऐसी-वैसी कोई झंझट नहीं। मैं बहुत सूक्ष्मता से सोचने वाला इंसान हूँ, मैं हिसाब निकाल लेता था कि ये चाय पीने आए हैं लेकिन उनके मुँह पर नहीं कहता था। मुँह पर तो ऐसा ही कहता था कि, 'आइए, पधारिए' लेकिन मन में लगता था कि 'यह चाय पीने आया है'। मुझे बेवकूफ बना जाए, वह अच्छा नहीं लगता था। मज़दूरों का पक्ष लेकर पुलिस ऑफिसर को किया नरम
प्रश्नकर्ता : आपने कहा था कि बड़े भाई से फौजदार (पुलिस ऑफिसर), सब बड़े-बड़े ऑफिसर भी घबराते थे, तो ऐसी कोई बात बताइए न!
दादाश्री : हमारे बड़े भाई का कॉन्ट्रैक्ट का काम था। वहाँ पर