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ज्ञानी पुरुष (भाग-1)
कुछ अलग घुस गया कि यह क्या अलग करने लगा है ? उनके मन में ऐसी इच्छा थी कि यदि ज्ञान था, तो अपना अलग से करने की ज़रूरत ही क्या थी? मैंने कहा, 'मैंने अलग नहीं किया है। लोग ऐसा समझते हैं मुझे जुदाई है। मैंने जुदा किया ही नहीं है'। मैं वहाँ जाने लगा तो लोगों को अच्छा नहीं लगता था।
वहाँ भादरण में शोभा यात्रा थी न, तब वे भी कह रहे थे, कि 'मुझे कहलवाया होता तो मैं आता न यहाँ पर। गाँव में शोभा यात्रा हो और मैं न आऊँ?'
___ अभी कुछ समय पहले मैं उनसे मिलने गया था, आप भी आए थे न? लेकिन अब पहले जैसा प्रेम प्रदर्शित नहीं करते। पहले तो मुझे देखकर खूब हँसते थे, खूब हँसते थे। उन्हें समझ में नहीं आता है कि क्या ऐसा अक्रम होता होगा? अब उन्होंने सुना नहीं है न, ऐसा सब। उन्हें ऐसा लगता है कि उल्टा रास्ता होगा। तो आपके भाई उन्हें कुछ कहने वाले थे बड़ौदा में।
प्रश्नकर्ता : सुकुमार।
दादाश्री : सुकुमार ने कहा, 'मैं तो कहूँगा'। मैंने कहा, 'मत कहना, मत कहना। बल्कि मुझ पर और ज्यादा वह (उल्टा) होगा। उन्हें मत कहना, गुप्त रखो'। बेकार ही वे मन ही मन चिढ़ेंगे। वह अपना धर्म है ही नहीं। इस तरह से रहना है कि उन्हें आनंद होना चाहिए। हमें उनके दुःख का कारण नहीं बनना है। जब तारापुर जाना था, तब उन्हीं के यहाँ रुका था। उन्होंने कहा, 'मेरे यहीं पर रुकना'। उस समय वे तारापुर में थे।
प्रश्नकर्ता : तारापुर में हेडमास्टर जी थे।
भगवान ढूँढे, लघुत्तम सीखते हुए प्रश्नकर्ता : दादा, वह घटना बताइए न, लघुत्तम के आधार पर आपको भगवान मिल गए।
दादाश्री : मैं बचपन से ही भगवान ढूँढ रहा था। भगवान के