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[5.1] संस्कारी माता
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इसलिए मुझे ऐसा लग रहा है क्योंकि वे मेरी मदर हैं?' अतः और तरीकों से भी जाँचकर देख लिया। फिर से निष्पक्षपाती भाव से जाँच की लेकिन बहुत अच्छी स्त्री, बहुत सुंदर विचार! आप गाली देकर जाओ और अगर तुरंत ही वापस आओ तो बुलाती थीं। करुणा वाली थीं, बहुत करुणा, ज़बरदस्त करुणा! और ऑब्लाइजिंग नेचर निरंतर! अतः अभी भी अपने हिन्दुस्तान में कुछ संस्कार हैं। अपने यहाँ ऐसा है न कि और कई प्रकार से दिवाला निकल चुका है लेकिन संस्कारों को लेकर दिवालिया नहीं हुए हैं।
झवेर बा की पर्सनालिटी का प्रभाव पड़ा दादा पर
झवेर बा तो पर्सनालिटी (विशिष्ट व्यक्तित्व) वाली थीं! वे जब भी हमारे मुहल्ले में से होकर निकलती थीं, और हम जिस मुहल्ले में जाते थे न, मैं और मदर दोनों जब सामने से आ रहे होते थे तो हर एक घर में से लोग बाहर निकलकर तुरंत ही बा को जय श्री कृष्ण, जय श्री कृष्ण कहा करते थे। मैं उस समय साथ में होता था तो क्या उस समय समझ नहीं जाऊँगा कि उनका ऐसा प्रभाव पड़ रहा है।
__ हमारे यहाँ से जब बड़ौदा तक जाते थे तब भी मैं साथ में होता था न, तब पूरे गाँव में सभी लोगों को देखता ही रहता था कि यह (बा की) कैसी पर्सनालिटी है! रात को सात बजे जब बस में से उतरकर जाते थे तब हमारे पास वाला जो मुहल्ला था न, हमें उस मुहल्ले में से होकर जाना पड़ता था तो बा के साथ एक बार वहाँ गया था मैं, तब साथ वाले मुहल्ले में पचास घर इस तरफ और पचास घर उस तरफ, इतना बड़ा मुहल्ला था। उस मुहल्ले में मकानों के बीच में से होकर जाने का रास्ता था। उस मुहल्ले में दाखिल होते ही वहाँ पर हर एक घर में से लोग बाहर निकल-निकलकर कह रहे थे 'बा आ गईं, बा आ गईं। हर एक स्त्री खाना बनाते-बनाते ‘झवेर बा आ गईं, बा आ गईं, बा आ गईं, बा आईं' करते हुए दौड़ी आती। छोटा सा मुहल्ला था इसलिए हर कोई घर से बाहर आ जाता था। दोनों तरफ के घरों में भाग दौड़-भाग दौड़ मच गई। इसी को पर्सनालिटी (प्रभावशाली व्यक्तित्व) कहते हैं