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ज्ञानी पुरुष ( भाग - 1 )
शुरू हुआ) और अभी अगर हम खाना खाएँ तो कोई नहीं डाँटेगा । ज्ञान से पहले यह सब बा के समाधान के लिए, बुजुर्ग बा के लिए! अतः इस प्रकार से कई बार तीन-तीन बार खाना पड़ा था मुझे। फिर भी उनके मन के समाधान के लिए घर पर भी खाना खाता था । मन को बिल्कुल भी वह नहीं होना चाहिए। पहले मैं उन्हें मना करता था और यदि मान जाते तो ठीक। ‘मेरी तबियत ठीक नहीं है' ऐसा कहता था लेकिन यदि फिर भी कहते तो खा लेता था ।
खाने की मात्रा उतनी ही
प्रश्नकर्ता : फिर भी उससे खाने की मात्रा नहीं बदलती थी, भोजन लेते थे लेकिन उसकी मात्रा संभालकर ।
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दादाश्री : मात्रा उतनी ही । उससे ज़्यादा नहीं खाते थे । चाहे कितना भी स्वादिष्ट भोजन हो फिर भी नहीं खाते थे । मात्रा संभालने के लिए। कोई ऐसी चीज़ होती जो खा सकते थे, गेहूँ की होती फिर भी एक तरफ रख देता था । उसके बावजूद भी यदि तीन बार खाने से अगर अजीर्ण हो जाए तो शाम को कह देते थे कि 'आज तबियत खराब है, शाम को नहीं खाना है'। लेकिन किसी को वह (दुःख) नहीं होने देते थे। बा को तो मैंने इतना सा भी बुरा नहीं लगने दिया, जिंदगी भर । ऐसी बा नहीं मिलेंगी। कभी भी देखने को नहीं मिलेंगी, ऐसी बा ! और यदि उन्हीं के साथ ऐसा करता तो मेरा क्या होता ? इसीलिए तीन-तीन बार खा लेता था ।
खुश रखकर काम लेना है
फिर आखिर में बा से कहा भी था कि, 'मैं तीन-तीन बार खा लेता हूँ, आपके लिए'। बा ने पूछा, 'वह कैसे भाई ?' फिर मुझसे पूछती थीं। फिर हीरा बा उन्हें सिखाती थीं न, ऐसा कुछ पूछिए कि ‘कम क्यों खा रहे हैं? 'भाई, क्यों आज खाया नहीं जा रहा है ?' हीरा बा जानती थीं कि बाहर खाकर आए हैं । बा मुझसे पूछती थीं, 'क्यों आज तुझसे खाया नहीं जा रहा है ? क्यों भाई आज खाया नहीं जा रहा है ?' मैं कहता