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ज्ञानी पुरुष (भाग-1)
थे, इसलिए डाँटते थे। मैं बारह साल का था और वे बत्तीस साल के। तो फिर ब्रदर तो बड़े ही कहलाएँगे न, ज़्यादा उम्र वाले। वे तो फिर डाँटेंगे ही न, बाकी फादर ने कभी नहीं डाँटा। फादर ने तो ब्रदर से ऐसा कहा था कि 'इसे मत डाँटना। इसकी जन्मपत्री अलग ही तरह की है!' लेकिन ब्रदर तो डाँटते थे।
तो फिर जब मेरे बड़े भाई डाँटते थे न, तो मेरे बापू जी कहते थे, 'मणि भाई, इससे कुछ मत कहना, एक अक्षर भी नहीं कहना है इसे! जन्मपत्री तो देखो, इसकी जन्मपत्री देखी है क्या? यह इंसान ऐसा नहीं कि इससे कुछ कहा जाए, इससे लड़ना मत'।
प्रश्नकर्ता : ऐसा कहते थे?
दादाश्री : हं। फिर भी बड़े भाई तो लड़े बगैर रहते ही नहीं थे न! बड़े भाई थे न, तो उसके पीछे प्रेम था, सच्चा प्रेम। और सच्चे प्रेम की खातिर अगर वे मुझे डाँटना तो क्या, लेकिन अगर मारते तब भी मैं नहीं लड़ता। अतः मैंने तो बा का प्रेम देखा, पिता का प्रेम देखा, बड़े भाई का प्रेम देखा, सभी का प्रेम देखा।
जिज्ञासा वश फादर से प्रश्न पूछता रहता था प्रश्नकर्ता : दादा, आप शुरू से ही फादर से बहुत प्रश्न पूछते
थे?
दादाश्री : हाँ। हालांकि मेरे फादर मुझसे चिढ़ते नहीं थे लेकिन उनके मन में ऐसा होता था कि 'यह बहुत पूछता रहता है। क्योंकि यह इसके साथ क्यों है? इसे ऐसा क्यों कहा जाता है ? इसे ऐसा क्यों कहते हैं?' ये सारा पूछ-पूछकर उनका दम निकाल देता था।
प्रश्नकर्ता : किस उम्र में पूछते थे दादा? बचपन से ही?
दादाश्री : सात साल का था तभी से। यह क्या और यह क्या? सिर्फ पूछना, पूछना, और पूछना... जहाँ पर कोई भी बात की, उसके बारे में पूछते रहने की आदत! और फादर से उन लोगों ने कहा था।