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[6] फादर
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के फादर हैं लेकिन मेरे क्यों नहीं हैं?' क्या मेरे भी फादर नहीं होने चाहिए अभी तक? व्यवहार तो अच्छा होना चाहिए न, पूरा ही।
माँ-बाप की सेवा वह प्रत्यक्ष-नकद प्रश्नकर्ता : आपके पहँचते ही चार घंटे के अंदर-अंदर फादर चले गए, तो उन्होंने आपसे सेवा नहीं ली?
दादाश्री : नहीं, फिर मैंने बा की सेवा की थी। बापू जी के समय मेरी उम्र बीस साल थी, यानी कि भरपूर जवानी की उम्र थी। हम बापू जी को कंधा देकर ले गए थे, उतनी ही सेवा हुई। फिर हिसाब मिला कि 'अरे, ऐसे तो कितने ही बापू जी हो चुके! अब क्या करेंगे?' तब मैंने कहा, 'जो हैं उनकी सेवा कर। जो चले गए, वे गॉन। लेकिन अभी जो हैं, तू उनकी सेवा कर। न हों, तो चिंता मत करना। ऐसे तो बहुत हो चुके हैं। जहाँ से भूल गए वहाँ से गिनना शुरू करो। माँ-बाप की सेवा, वह प्रत्यक्ष, नकद है। भगवान दिखाई नहीं देते, जबकि ये तो दिखाई देते हैं। भगवान कहाँ दिखाई देते हैं जबकि माँ-बाप तो दिखाई देते हैं।
जीवन भर जो किया अंत में वही मिलता है प्रश्नकर्ता : मृत्यु के समय फादर की स्थिति कैसी थी?
दादाश्री : जब मेरे फादर की मृत्यु होने लगी न, तब फादर के पास हमारी एक बुआ थीं, रईबा। फादर की अंतिम रात को उन्होंने मुझसे कहा कि 'तू जा भई'। मैंने कहा, 'आपको यहाँ क्या काम है?' तो कहा, 'मुझे भगवान का नाम लेने दे। तो आकर, उस समय वे ज़ोर-ज़ोर से फादर के कान में कहने लगीं, 'बोलो रा..म...' क्या कहा?
प्रश्नकर्ता : बोलो, राम।
दादाश्री : तो कान में बोले न, तो इतनी ज़ोर से आवाज़ हुई कि अंदर जीव यों ही डरा हुआ होता है, तो इससे और ज़्यादा डर जाता है। तब मैंने कहा कि, 'अब रहने दो न। अंदर गूंज रहा है, मत बोलो। बल्कि