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ज्ञानी पुरुष (भाग-1)
यहाँ से आपका मुँह हटा दो'। बेकार ही, यहाँ अंदर लाउड स्पीकर जैसा लगता है। ऐसा लगता है कि बड़ा लाउड स्पीकर बोल रहा है। उससे अंदर जीव घबरा जाता है बेचारा।
तब मैंने उनसे कहा, 'बोल दिया, बस! अब माथाफोड़ी मत करना। जब वे बोल सकते थे, तब भी नहीं बोले तो अब क्या बोलेंगे?' तो 'राम बोलो' कहते हैं। यदि पहले किया होता तो अभी उन्हें ऐसा सब नहीं मिलता? जो सामान हो, वही मिलता है न!
__अब यह सब किस काम का? अब जाते समय, गाड़ी में से उतरते समय हम कहें कि 'कैसे हो? मज़े में हो, तबियत अच्छी है?' तो वह पोटली उठाकर हमें ही मारेगा! अरे भाई! उतरने तो दे आराम से। अब क्या उनकी खबर पूछ रहे हो? यह तो मैं अपने फादर की हकीकत बता रहा हूँ।
मैं तो बीस साल का था और समझ गया। मैंने कहा, 'ये अंदर घबरा रहे हैं, और बेकार ही आवाज़ कर रहे हैं। ये किस तरह के लोग हैं? अंदर घबराहट क्यों करवा रहे हैं? अरे, जीने दो न अच्छी तरह से! अंदर धमाधम हो रहा है बेचारों को!'
अब उस समय 'राम, राम' करने से क्या बदल जाता? बिना बात के उस समय 'जय जिनेन्द्र' बोलो, 'जय जिनेन्द्र'। अरे भाई, इस समय क्यों बुलवा रहे हो? जब ठीक थे, उस समय बैठने नहीं दिया ठिकाने! तब तो कहते थे, 'चीनी ले आओ, यह ले आओ'।
अंतिम समय में आता है पूरे जीवन का सार प्रश्नकर्ता : दादा, अंतिम घंटे में ये तिब्बत के लामा कुछ क्रियाएँ करवाते हैं। लामा ऐसा कहते हैं, जब इंसान मृत्यु शैया पर होता है तब वे लोग उसकी आत्मा से कहते हैं कि 'तू इस तरह से जा,' या फिर अपने में जो गीता का पाठ करवाते हैं कि कोई अच्छे शब्द उन्हें कहें... उससे अंतिम घंटों में उस पर कोई असर होता है क्या?
दादाश्री : कुछ भी नहीं होता। आप बारह महीने का अकाउन्ट