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ज्ञानी पुरुष (भाग-1)
मत करना'। मैंने कहा, 'नहीं, वे मुझे डाँटेंगे। मैं तो ऐसा ही करूँगा'। ऐसी बहुत सी शरारतें की हैं।
फादर को छला, बा को नहीं छला। मैं जो कुछ भी करता था, वह सिर्फ बा को बता देता था। मुझे ऐसा डर रहता था कि फादर डाँटेंगे इसलिए उनसे कह देता था कि 'मैं नहीं गया। रात को सो गया था।
हालांकि मैं नाटक देखकर आया होता था। फिर जब लोग उन्हें कहते थे कि 'आपका बेटा तो नाटक देखने आता है'। तब फिर वे कहते थे कि 'तू कब गया था? तू कब उठा था?' मैंने कहा, 'मैं तो कुछ देर बाद वापस आ गया था।
इन सब के लिए बहुत प्रतिक्रमण किए। घर में मैंने क्या-क्या किया, यहाँ क्या-क्या किया? फादर के साथ में क्या-क्या दगा किया? वे कहते थे कि 'नाटक आया है, तुझे देखने जाने की ज़रूरत नहीं है'। तब कहता था, 'हाँ, नहीं जाऊँगा'। और नाटक देखकर आकर चुपके से, बा को पहले से ही बता देता था कि दरवाज़ा ज़रा खुला रखना तो वे दरवाज़ा खुला रखती थीं और मैं एकदम से अंदर घुस जाता था। ये सारे गुनाह ही किए हैं न!
हमारी उपस्थिति में फादर का देहांत प्रश्नकर्ता : मूलजी भाई किस उम्र में गए ? दादाश्री : पचास-इक्यावन साल की। प्रश्नकर्ता : ऐसा? बहुत कम उम्र में चले गए!
दादाश्री : कम उम्र में लेकिन उन दिनों तो इक्यावन साल तक जीना भी बहुत कहा जाता था।
__ प्रश्नकर्ता : उसके लिए तो बहुत खुशी मनाते थे लोग, वन मनाया, ऐसा करके मनाते थे।
दादाश्री : इक्यावन-वन में आया, कहते थे।