________________
140
ज्ञानी पुरुष (भाग-1)
खाकर जाते थे आराम से! तो रात को हमें भी आनंद होता था कि इतने सारे खाना खाकर गए। यों दो लोगों को खाना खिलाने की शक्ति नहीं है जबकि यह तो इतने सारे खटमलों को खिलाया! 'जितने आए उतने आराम से खाओ भाई, आपका ही घर है, हम खाना खिलाकर भेजते थे। बा अपने मेहमानों को खाना खिलाकर भेजते थे और हम अपने मेहमानों को खिलाकर भेजते थे। वह अपना पेटभर खाना खाकर फिर घर चला जाता था और फिर ऐसा भी नहीं है कि आराम से दस-पंद्रह दिन का एक साथ खाता था! एक दिन तो लगभग नौ सौ से एक हजार खटमल चढ़ गए थे। फिर भी मैंने कहा, 'तुम हो और मैं हूँ, जितना खाना हो उतना खाकर जाओ'। हम जागते हुए खाना खिलाते हैं । पाँच खटमल खाएँ तो अच्छा है या हज़ार? हज़ार। त्वचा को सुन्न कर देते थे, फिर है कोई संताप? अतः मेरे ज्ञान ने कहा, 'रात को जगाते हैं, ये ध्यान करने में उपकारी हैं'। और देखो! तपोबल से अंदर प्रकाश हो गया। क्योंकि वे आत्मा को नहीं काटते थे, देह को काटते थे। यदि अभी तक देह पर प्रेम है तो आत्मा पर कब प्रेम आएगा? खटमल के काटने पर हमें पता चलता है न कि प्रेम कहाँ पर है?
तप करके भी खटमल के साथ कोई मतभेद नहीं
तो मतभेद नहीं पड़ने दिया हमने, खटमल से भी मतभेद नहीं। घर में कभी जब खटमल हो जाते थे तो उनसे कोई मतभेद-वतभेद नहीं। खटमल भी बेचारे समझ गए थे कि ये मतभेद रहित इंसान हैं। हमें अपना कोटा (हिस्सा) लेकर चलते बनना है।
प्रश्नकर्ता : इसका क्या प्रमाण है कि आप यह जो दे देते थे तो वह पूर्व का सेटलमेन्ट नहीं हो रहा होगा?
दादाश्री : सेटलमेन्ट ही था, सेटलमेन्ट ! यह कुछ नया नहीं था, लेकिन सेटलमेन्ट का प्रश्न नहीं है, अभी तो भाव नहीं बिगड़ना चाहिए न? नया भाव नहीं बिगड़ना चाहिए न? वह सब सेटलमेन्ट है, इफेक्टिव है लेकिन अभी नया भाव नहीं बिगड़ना चाहिए। बल्कि हमारा नया भाव