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ज्ञानी पुरुष (भाग-1)
हैं, 'तप करने हैं मुझे, उपवास करना है मुझे'। 'अरे! क्या उपवास करेगा? जब ये खटमल काटें तब तप करना, खटमल और मच्छरों के सामने', ऐसी कठोरता की है इस शरीर पर लेकिन वह सही रास्ता नहीं था न!
प्रश्नकर्ता : उसे असहज कहेंगे?
दादाश्री : नहीं। वह सब नकल की थी, इगोइज़म से नकल की थी। हालांकि अब हमारे बिस्तर पर खटमल आते ही नहीं हैं। बेचारों का हिसाब खत्म हो गया। यदि हिसाब अधूरा रखते तो हिसाब कच्चा रहता। हम तो आराम से खाना खाने देते थे। खाना खाकर क्या वे मेरे अठहत्तर साल ले गए है? हैं न हम, अठहत्तर साल की उम्र में, आराम
से!
जागृत अवस्था में काटने दिया उससे ज्ञान प्रकट हुआ
प्रश्नकर्ता : आप जैसी क्षत्रियता हम में नहीं है, इसलिए काटने नहीं देते हैं तो अन्य कौन सा उपाय कर सकते हैं?
दादाश्री : खटमल काटे तो उसके लिए अन्य उपाय भला क्या है? उन्हें बाहर डाल आओ। आपको शंका रहती है कि 'ये मुझे काट लेंगे', तो आप उन्हें बाहर डालकर आओ, बाकी जगत् शंका करने जैसा नहीं है। आपको ठीक न लगे तो चुनकर बाहर रखकर आओ और मैं तो चुनता भी नहीं था। इससे फिर मेरी पूरी रात जागते हुए ही बीतती थी, इन खटमलों के कारण। फिर भी परेशान नहीं हुआ। हमें खटमल काटते थे न, लेकिन कभी भी हमने उठाकर बाहर नहीं फेंके। हमने काटने दिया है लेकिन आपमें इतनी शक्ति नहीं आएगी इसलिए आपसे ऐसा नहीं कहता हूँ। आपको तो खटमल पकड़कर बाहर डाल आने हैं ताकि आपको मन में संतोष हो जाए कि यह खटमल बाहर चला गया।
हम तो, जब सर्दी के दिनों में ज़रा नींद आ जाए तो धीरे से ओढ़ा हुआ निकाल देते हैं, फिर वही (ठंड ही) जागृत रखती है। ज्ञानी को