________________
[5.2] पूर्व जन्म के संस्कार हुए जागृत, माता के
151
सादा बनाऊँगा, बहुत हुआ तो रोटी नहीं बनाऊँगा, आटे का हलुवा बना दूँगा। मुझे तो आता है हलवा, सब्जी, खिचड़ी वगैरह सब और इस तरह से कुछ भी कर लूँगा। ऐसा मुझे करना आएगा। आप परेशान मत होना। आप परेशानी में दाल बनाने रखोगे और चावल बनाओगे तो वे भी आपसे पॉज़िटिवली नहीं होगा और मैं तो यह समझा दूंगा कि 'मामा खाना खा लो, चलो झटपट, आपको भूख लगी होगी। वर्ना बहुत देर हो जाएगी'। हलुवा है, सब्जी है ऐसा सब उनके लिए बना देंगे तो वे खुश हो जाएँगे। अपने यहाँ लोग हलुवा परोसने पर खुश हो जाते हैं और आलू को तलकर फर्स्ट क्लास सब्जी बना दें तो बहुत खुश हो जाते हैं। और क्या करें फिर?
प्रश्नकर्ता : तो आपने बनाया?
दादाश्री : हाँ, फिर मैंने बना दिया। इधर-उधर करके हलुवावलुवा हिला-हिलाकर दे दिया सारा और थोड़ी कढ़ी बना दी, इतना हलुवा बनाया था और थोड़ी खिचड़ी चढ़ा दी। दाल-चावल तो राम तेरी माया! मैंने सोचा, 'यह बिल्कुल आसान है, दाल-चावल बनाने की परेशानी क्यों मोल ले', उसके बाद उन लोगों ने अच्छी तरह से खाना खाया। हलुवा खाकर खुश हो गए वे लोग।
चाहे कैसे भी संयोग हों, लेकिन भाव मत बिगाड़ना
फिर उन लोगों के खाना खाकर चले जाने के बाद अगले दिन माँ और वाइफ से मैंने कहा 'अब यदि फिर से कभी भी ऐसा व्यवहार होगा, घर में कभी भी ऐसे भाव होंगे, तो मैं घर से वैराग्य ले लूँगा। मैं यहाँ से संसार का त्याग करके साधु दशा अपना लूँगा'। डराने के लिए इस तरह सख्ती से कहा था। उन दिनों ज्ञान नहीं था लेकिन इतनी सख्ती से कहा था। इस तरह धमकाया था मैंने। त्रागा (अपनी मनमानी करवाने के लिए किया जाने वाला नाटक) किया था। ऐसा कैसे चलेगा? फिर ये लोग डर गए।
लेकिन मुझे कहना पड़ा कि 'कोई भी इंसान रात को तीन बजे आए तब भी उसे खाना खाने के लिए पूछना और किसी का मन ज़रा