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[5.2] पूर्व जन्म के संस्कार हुए जागृत, माता के
'अभी नहीं आए होते तो अच्छा था', ऐसा भाव नहीं होना चाहिए। ऐसे भावों से तो यदि मन एक बार बिगड़ जाए तो सुबह अगर उस व्यक्ति को बिस्तरे बाँधता हुए न देखें, तो लगता हैं कि 'अरे! ये मुए तो वापस आज भी रुकेंगे ही। ठीक है शाम को जाएँगे लेकिन आज का खाना तो बनाना ही पड़ेगा' और वह भी बिगड़े हुए मन से खिलाना पड़ता है। उसके बाद शाम को भी अगर बिस्तरा बाँधते हुए न देखें तो फिर से चेहरा बिगड़ जाएगा। उसके बाद तो चाहे मन बिगाड़कर, नाखुश होकर भी करना पड़ता है।
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भले ही भतीजे का जमाई हो, लेकिन जो कुछ भी हो वह, खिचड़ी और सब्ज़ी रख देना । आपको जो ईज़ी लगे वह, लेकिन उन्हें भाव से, प्रेम से खाना खिलाना, बस । सब्ज़ी-रोटी, जो जल्दी से बन सके वह बनाना। मैं ऐसा नहीं कहता कि कंसार बनाना इनके लिए ।
इज्ज़त के लिए नहीं लेकिन प्रेमपूर्वक भोजन करवाना है मुझे
प्रश्नकर्ता: दादा, अपनी इज़्ज़त रखने के लिए अच्छा-अच्छा बनाते हैं, फिर भले ही भाव बिगड़े हुए हों !
दादाश्री : मैं तो ऐसे नियम वाला हूँ कि चाहे कोई भी रिश्तेदार आए, उल्टे-सीधे टाइम पर आए, लेकिन मन में ऐसा कुछ भी नहीं रहता कि 'मुझे मेरी इज़्ज़त रखनी है'। मुझे उन्हें प्रेमपूर्वक भोजन करवाना है। चाहे कुछ भी, रोटी या सब्ज़ी रख दें, मेरी इज़्ज़त नहीं जाती । मैं इज़्ज़त बनाने नहीं आया हूँ कि मेरे यहाँ ऐसा भोजन होना चाहिए, और ऐसा चाहिए। हमारे यहाँ ऐसा नियम था जबकि लोग तो इतने इज़्ज़तदार हैं कि वे सुबह - सुबह श्रीखंड-पूड़ी खिलाते हैं ? श्रीखंड खिलाएँगे तभी उन्हें इज़्ज़तदार मानेंगे न, इज़्ज़तदार! 'ऐसा क्यों कर रहे हो ? ' ' श्रीखंडपूड़ी का रौब तो जमाना है'। मैंने बा से कह दिया कि 'मुझे रौब नहीं जमाना है। यहाँ रिश्तेदार या जमाई आएँ तो आपको जैसी सुविधा हो वह बनाना लेकिन प्रेम से खिलाना' ।
प्रश्नकर्ता: समझ में आया ।