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ज्ञानी पुरुष (भाग-1)
हम जैसे नहीं हैं। अपने लोग तो ऐसे हैं कि यदि उन्हें कोई भोजन कराए
और फिर कहे कि 'कुछ लेना हो तो लेकर जाइए', तो दस-बीस लड्डू ले आते हैं। जबकि इन्हें ऐसा कुछ भी नहीं है। तब फिर कहाँ जाएँ वे बेचारे ? यानी इंसान के ब्लड के अलावा उन्हें और कोई ब्लड नहीं चाहिए।
प्रश्नकर्ता : ठीक है।
दादाश्री : कहाँ जाएँ वे, यह बताओ? कौन सा ऐसा होटल है जहाँ वे जाएँ? क्योंकि यही उनकी खुराक है। अन्य कोई खुराक नहीं है। यही स्पेशल फूड है। यदि दूसरा फूड होता तो हम लाकर उन्हें खिला देते। वह भी फिर मनुष्य का खून, जानवर-वानवर का खून नहीं चलता। मनुष्य का खून ही उनकी खुराक है। यदि घी-दूध पीते तो हम उन्हें दे देते। लेकिन वे वह नहीं लेते, छूते भी नहीं हैं बेचारे। अपनी होटल (देह) में जो है वही उनकी खुराक है, और कहाँ जाएँ वे? यह सब सोच लिया था मैंने। सोचने में कुछ भी बाकी नहीं रखा था।
निर्भय बनाया और आराम से खिलाते थे इसलिए फिर उन्हें भोजन करने देता था। आए हो तो, 'खाना खाकर जाओ। यह होटल अच्छा है, खाना खाकर जाओ आराम से। भयभीत मत होना'। वे मेरे हाथ में आ जाते थे, पकड़े भी जाते थे। एक-एक मेरे हाथ में आ जाता था लेकिन वे भयभीत नहीं होते थे। वे समझ गए थे कि 'ये मारेंगे नहीं'। सब समझते हैं। हर जीव समझता है कि 'ये मुझे मारेंगे या नहीं!' आपके भाव को पहचान जाते हैं। सिर्फ मनुष्यों को ही सामने वाले के भावों को पहचान ने में बहुत देर लगती
उसके बाद तो हम खटमलों को जान-बूझकर खून पीने देते थे, काटने भी देते थे कि 'यहाँ पर आए हो तो अब खाना खाकर जाओ'। उस बेचारे को निकाल तो नहीं सकते थे न! क्योंकि इस होटल में किसी को दुःख नहीं देना है, वही हमारा काम। अपनी होटल में आया है तो