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[5.2] पूर्व जन्म के संस्कार हुए जागृत, माता के
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अकर्मी मारने का निमित्त बनते हैं! वे (आपका) हिसाब ही हैं। चाहे कितने भी मारो फिर भी अगर ग्यारह को काटना होगा तो काटेंगे लेकिन बारहवाँ नहीं काटेगा।
दादा की अनोखी शैली खटमलों से भी बातचीत
प्रश्नकर्ता : फिर क्या हुआ दादा? खटमलों को मारना बंद हो गया? कैसे हुआ?
दादाश्री : मैंने तो फिर दूसरी तरह से जाँच की कि 'भाई, जब हम जाग जाते हैं और लाइट लगाते हैं तो आप भाग क्यों जाते हो?' तब उन्होंने कहा, 'आप लोग मार दोगे, हिंसक हो'। हम लोगों से भयभीत होकर भाग जाते हैं बेचारे! यह तो हमें खूनी जैसा लगता है। मैंने तो उनसे पूछा था कि 'हमें अहिंसक बनना है'। तब उन्होंने बताया, 'आप कैसी हिंसा कर रहे हो? यह आपकी हिंसा का ही फल है। हम फल दे रहे हैं हिंसा का। द्वेषी बनकर आपने हम पर द्वेष किया है। उसके बाद से मैंने तय किया कि मुझे हिंसक नहीं रहना है।
इंसान के पसीने में से स्वयंभू उत्पन्न होने वाले
तब फिर मैंने पूछा, 'लेकिन आप खाना खाने क्यों आते हो?' तब उन्होंने कहा, 'इसके अलावा हमारी और कोई खुराक नहीं हैं। भैंस का दूध हम से पीया नहीं जा सकता, हम तो सिर्फ मनुष्य का ही खून पीने वाले लोग है क्योंकि हम स्वयंभू चीज़ हैं। आपके पसीने में से उत्पन्न होते हैं इसीलिए हम आपके ही हैं। अब क्या रास्ता निकालोगे?'
खटमलों को तो भगवान ने मनुष्य जाति का बताया है। खटमलों को तिर्यंच नहीं माना है, मनुष्य देह माना है। (उसे स्वेदज कहा जाता है) उन्हें असंगी मनुष्य कहा गया है।
__ आहार सिर्फ मनुष्य का रक्त ये खटमल मनुष्य में से ही आए हैं और वे सिर्फ मनुष्य का रक्त ही पीते हैं, वे और कुछ भी नहीं खाते। यही उनकी खुराक है। वे लोग