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[5.2] पूर्व जन्म के संस्कार हुए जागृत, माता के
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उसके बाद मैं समझ गया कि यह गलत है। फिर बंद कर दिया। मैंने कहा, 'यह तो मुझसे भूल हो रही है'। काँप उठना चाहिए कि 'अरेरे! इसका क्या होगा अब?' काँप जाते थे हम तो। उसे लगी, उसके बाद मन में बहुत ही पछतावा हुआ था कि ऐसा सब कैसे हो गया? बेचारे को खून निकला! उस समय अंदर घबराहट हो गई थी छाती में। ये सभी क्षम्य दोष लेकिन ऐसा नहीं होना चाहिए। हमने (खुद में) अक्षम्य दोष तो देखा ही नहीं। इन जैसे निर्दय नहीं, ऐसी निर्दयता नहीं थी। ये तो खून करने के बाद, उस पर बैठकर रोटी और कढ़ी खाते हैं ! लोग इस हद तक निर्दयी होते हैं। यों ही किसी को परेशान कर आते हैं, हुल्लड वगैरह चल रहा हो तब पेट्रोल छिड़ककर आ जाएँ, ऐसे हैं ये सब। बिना हेतु के नहीं लेकिन जैसे ही नाम लिया कि तूफान
प्रश्नकर्ता : दादा, जब आप छोटे थे, तब आपको हुल्लड़ वगैरह में जाने का मन होता था? ।
दादाश्री : होता तो था लेकिन ऐसा तूफान नहीं मचाते थे। जिसने हमारा कोई भी नुकसान नहीं किया उसका नुकसान कर दें, हमारा हुल्लड़ ऐसा नहीं होता था। हमारा तो, यदि कोई हमारा नाम ले-ले तो वहाँ पर तूफान मचा देते थे।
जबकि दंगे-फसाद में तो, सब लोग किसी बेचारे ने कुछ भी नहीं किया हो फिर भी उसका घर जला देते हैं और दुकान जला देते हैं। यह सब क्या है?
प्रश्नकर्ता : कोई लेना-देना नहीं। दादाश्री : लेना-देना नहीं, फिर भी। प्रश्नकर्ता : सिर्फ शौक के लिए ही न!
दादाश्री : नहीं, शौक भी नहीं था। यह तो एक तरह की भेड़चाल। उसने किया, उसने किया इसलिए उसने किया। बिना सोचे-समझे