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ज्ञानी पुरुष ( भाग - 1 )
हो गए हैं तो क्या वे रात को काटते नहीं है ? परेशानी नहीं होती ? तब उन्होंने कहा, 'भाई काटते ज़रूर है लेकिन उसमें मुझे कोई आपत्ति नहीं है'। मैंने पूछा 'क्यों ? ये तो पूरी रात काटते हैं'। तब कहा, 'उन खटमलों में यह एक गुण बहुत अच्छा है'। मैंने पूछा 'कौन सा ?' तो कहा, "भाई, वे क्या कोई पोटली लेकर आते हैं ? वे खाना खाकर चले जाते हैं । वे कोई पोटली लेकर नहीं आते हैं'।
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खटमल तो भिक्षुक हैं। वे कहाँ झोली लेकर आए हैं? जब उन भिक्षुकों का पेट भर जाएगा तो चले जाएँगे । उन्हें घर - वर नहीं बनाने हैं और कल के लिए भी कुछ ले नहीं जाते। दूसरों की तरह वे कोई टिफिन लेकर थोड़े ही आते हैं कि 'हमें कुछ देना न, माई - बाप ?' लोग तो टिफिन लेकर आते हैं जबकि ये टिफिन लेकर नहीं आते इसलिए मुझे कोई आपत्ति नहीं है,
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कहा ।
तो मुझे यह शब्द पसंद आया । मैंने कहा, 'यह बात तो उपकारी है । ये शब्द मुझे काम के लग रहे हैं'। उन्होंने कहा, वे पोटली लेकर नहीं आते हैं। यदि पोटली बाँधकर ले जाते तो उन्हें रोकना पड़ता कि रुको, क्यों बाँध रहे हो ? जबकि वे तो खाना खाकर चले जाते हैं। यानी अपने जैसे परिग्रही नहीं है। उन्होंने इतनी अच्छी बात कही कि उससे मुझे हेल्प हुई, मुझे अच्छी लगी। मैंने कहा, 'ये कितनी धीरज वाली हैं ! धन्य है माँ जी को ! और इस बेटे को भी धन्य है ! '
लोग क्या खटमल को जाने देते हैं ? हाथ में आया कि उसे मार ही देते हैं। तब फिर मैं उससे पूछता हूँ कि 'क्या तुझे अब पक्का विश्वास हो गया है कि एक कम हो गया होगा ? कौन सी गारन्टी से तू समझ गया कि एक कम हो गया ? तब तो रोज़ के रोज़ कम ही होते जाएँगे ' । तो कहा, 'नहीं! ऐसा कोई नियम नहीं है'। मुझसे पूछा, 'क्या करना चाहिए ?' तब मैंने कहा, 'खटमल को मारने की ज़रूरत ही नहीं है'। और फिर भी अगर मारते ही रहेंगे... लेकिन लोग यह नहीं जानते कि खटमल किस वजह से होते हैं ? अब, जब सीज़न बदलता है तब जो लोग नहीं मारते हैं उन्हें भी एक भी खटमल नहीं मिलता । तब वे