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ज्ञानी पुरुष (भाग-1)
भेड़चाल। हमारा ऐसा नहीं था। हम हेतु देखते थे, फायदा देखते थे, नुकसान देखते थे। यदि हमारा नाम लेते तो फिर एकाध की तो आ बनती थी। अंदर उससे डिस्टर्ब हो जाते थे, हिन्दुस्तान-पाकिस्तान जैसा हो जाता था। कहते थे, 'आ जा'।
पूर्व के संस्कार, मदर को देखकर जागृत हुए
प्रश्नकर्ता : आपको जो ज्ञान हुआ, उसमें माँ के संस्कारों के साथ-साथ आप अपने भी पूर्व जन्म के उच्च संस्कार लेकर आए होंगे न?
दादाश्री : बहुत उच्च संस्कार होने चाहिए, ऐसा मैं मानता हूँ क्योंकि मुझे बचपन से वैराग्य रहता था, हर एक बात में। मदर भी उच्च कोटि की मिली थीं। मदर अच्छी मिल गई थीं। पूरी तरह से सभी संस्कार सिर्फ मदर के ही! क्योंकि मेरा किया हुआ तो था ही लेकिन जब मैं यह सब देखता, तभी मुझे यह सब आता न!
प्रश्नकर्ता : और नहीं तो क्या?
दादाश्री : अतः मदर का अनुभव देखने मिला, इसलिए आ गया। ये सारे मदर के संस्कार हैं। इस जन्म के संस्कार है लेकिन माल तो मेरा ही है न? संस्कार यानी आपके माध्यम से मेरे माल का जागृत होना। मेरे माल को जागृत करने के लिए अन्य संस्कारों की भी ज़रूरत थी। कितने ही जन्मों से मैं करता आ रहा था तो इस जन्म में वह टंकी भरकर फूटी। यह सब खुद का ही किया हुआ है न! उन्होंने यह सिखाया, तो पूरी जिंदगी मुझे वैसा ही रहा। यानी ये तो अपने ही संस्कार हैं न! वर्ना क्या कोई माँ ऐसा कहेगी कि 'तू मार खाकर आना?' ये अपने संस्कार हैं और मूलतः तो मैं अपने सभी संयोग लेकर आया था। नियम ऐसा है कि जैसे खुद के संयोग होते हैं वैसा ही पूरा माहौल मिलता है।
प्रश्नकर्ता : आप मूल रूप से, शुरू से ही यह माल लेकर आए
थे?