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[5.1] संस्कारी माता
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मैंने कहा, 'क्यों नहीं खाया?' तब वे कहतीं, 'मेरा पेट तो खाना खिलाते समय ही भर गया, खाना खिलाकर ही!' तो क्या ऐसा होता है कि कोई इस तरह से तृप्त हो जाए? लेकिन ऐसा होता था। यदि तुझे भूख लगी हो और फिर मैं खाना खिलाने लगूं तो मैं खुद ही तृप्त हो जाऊँ, ऐसा हो सकता है क्या? किसी ने ऐसी कोई बात सुनी है कि खाना खिलाने वालों का पेट भर जाए? मुझे ऐसा अनुभव होता था।
प्रश्नकर्ता : होता है दादा। जो खाना खिलाता है उसे ऐसा होता ही है, दादाजी।
दादाश्री : वह अच्छा है। उन्हें तो बिल्कुल भी भूख नहीं लगती थी। खाना खिलाने में बहुत आगे! मैंने ऐसा प्रेम देखा था।
प्रश्नकर्ता : प्रेम और सहिष्णुता की मूर्ति!
दादाश्री : कोई दही लेने आए तो इतना सारा दही निकालकर दे देती थीं और ऊपर से मलाई वाला, 'वर्ना अपना बुरा दिखेगा', ऐसा करके फ्री दे देते थे और वह भी मलाई वाला। वे लोग पुण्यशाली थे न! नहीं?
बा के धीरज ने बापू जी को बचाया प्रश्नकर्ता : और फिर वे धीरज वाले भी थे!
दादाश्री : हाँ! एक बार ऐसा हुआ कि मेरे पिता जी रात को बाहर सो गए थे। पाँच-सात फुट लंबा साँप निकला और वह उनके सिर पर चढ़ गया था। तब मेरी बा ने देखा पूरा साँप शरीर पर से होकर गुज़र गया। उसके बाद बा ने मेरे पिता जी को उठाया और कहा कि 'आप बिना ओढे सो गए थे। पूरा साँप आपके शरीर पर से होकर निकल गया। अब मैंने गरम पानी रख दिया है तो नहा लीजिए'। बा ने अगर यह समता और धीरज नहीं रखा होता तो पिता जी चौंककर जाग जाते। पिता जी को लगता कि 'मुझे काट लेगा', साँप को लगता कि