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ज्ञानी पुरुष (भाग-1)
दादाश्री : वे तो देवी ही कहलाएँगी न! उनके ही संस्कार मुझे प्रेरणा देते हैं न! ऐसे लोग नहीं मिलते, कम होते हैं।
प्रश्नकर्ता : बहुत कम, रेयर (शायद ही)।
दादाश्री : उनके पिता और माता, वे तो और ही तरह के थे, दुनिया में देखने योग्य लोग, राजसी घर था। यानी बहुत ही उच्च प्रकार का माल था, शुद्ध माल।
रवजी भाई के घर के उस स्तंभ को धन्य है। उस घर में हमेशा सदाव्रत ही चलता रहता था। बा जिस घर में रहे थे न वहाँ, उनके पिता जी के घर पर हमेशा सदाव्रत ही रहता था। जहाँ पर ऐसा सदाव्रत हो, वहाँ पर बड़े-बड़े लोगों का जन्म होता है, हमेशा ही।
प्रश्नकर्ता : हाँ, वहाँ पर दादा का जन्म हुआ।
दादाश्री : सदाव्रत यानी वहाँ से कोई भूखा वापस नहीं जाता। कोई साधु-सन्यासी आ जाएँ तो उन्हें रहने की जगह देते थे, खाना खिलाते थे, उनका ध्यान रखते थे।
प्रश्नकर्ता : पहले कई लोग ऐसा करते थे, हमेशा सदाव्रत रखते
थे।
दादाश्री : हाँ, इसीलिए बा जैसों का वहाँ पर जन्म हुआ न, वर्ना नहीं होता न!
प्रश्नकर्ता : उस पुण्य का लाभ मिलता है न! बा का चेहरा देखते ही दुःखी इंसान भी सुखी हो जाता ___दादाश्री : मैंने अपनी बा, झवेर बा जैसी कोई नारी देखी ही नहीं। मेरी माँ का चेहरा देखते ही, कोई दुःखी इंसान भी सुखी हो जाए, ऐसी थीं हमारी बा। उनके गुणों का क्या वर्णन करूँ?
हमारे गाँव में सात हज़ार लोगों की बस्ती थी लेकिन मैंने ऐसी मदर नहीं देखी। वह भी फिर निष्पक्षपाती रूप से सोचकर देखा कि क्या