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ज्ञानी पुरुष (भाग-1)
ने कहा है न कि 'जिनके सभी अंग पवित्र हैं। वे पवित्र अंग हैं...' क्या कहा था आपने?
प्रश्नकर्ता : सर्वांगे पवित्रता वेदी है, अद्वितीय महानता ऐसी है।
दादाश्री : अतः इन सभी अंगों में पवित्रता फैली हुई है। वह मेरा पुरुषार्थ नहीं है। यह तो मैं लेकर आया था ऐसा सारा सामान, सभी अच्छे-अच्छे एविडेन्स।
अतः हमारे द्वारा विकारी संबंध स्थापित नहीं हुए हैं। विकारी संबंध के अलावा बाकी सबकुछ हुआ है। हमें ऐसा मिथ्याभिमान था कि हमारे द्वारा 'विकारी संबंध नहीं होने चाहिए'। कुल के अभिमान की वजह से बहुत संभाला कि 'हम से ऐसा नहीं होना चाहिए'।
अतः चरित्र के अलावा बाकी सभी खराबी हुई है लेकिन चरित्र खराब नहीं हुआ है। चरित्र सही रहा है। चरित्र भ्रष्ट नहीं हुआ।
प्रश्नकर्ता : चरित्र भ्रष्ट अर्थात् कभी मानसिक विकार हुआ था?
दादाश्री : हाँ, शायद कभी मानसिक विकार हुआ हो, उसका भी उपाय कर दिया था फिर। जैसे कि अगर कपड़े पर दाग लग जाए तो उसे साबुन से धो देते हैं न! वैसा ही उपाय मेरे पास था। साबुन से धो देते हैं या नहीं? जिनके पास हो, वे?
प्रश्नकर्ता : ठीक है तो आपने क्या उपाय किया?
दादाश्री : वह उपाय तो अभी कहने जैसा नहीं है। वह तो सारा आध्यात्मिक उपाय है। वह स्थूल उपाय नहीं है। वे जो भूलें हुईं वे स्थूल हैं लेकिन उनका उपाय आध्यात्मिक है। लेकिन साफ-सुथरा था, वह वाली साइड साफ-सुथरी थी।