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ज्ञानी पुरुष ( भाग - 1 )
गया था। वहाँ ताश खेलने में ठगा गया। पहले गोल चक्कर में ताश खेलते थे न ? तीन पत्ती खेला और हार गया।
प्रश्नकर्ता : तीन पत्ती खेलते थे उस समय ?
दादाश्री : हाँ, तब तीन पत्ती खेलते थे । उन दिनों खेलने गया था। क्या मित्र भी देवता जैसे थे ? तीर्थंकरों के लिए तो सभी देवता, मित्र बनकर आते हैं और हमारे मित्र तो ऐसे थे कि ताश-वाश खेलते थे । जब ताश खेलते हैं तब तो अहंकार इन्टरेस्ट से उसमें सही-गलत भी करता है मित्रों के संग, लेकिन मूल माल अंदर का ही न !
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वहाँ पर तीन पत्ती में ठगा गया। पंद्रह रुपए, उन दिनों पंद्रह रुपए, वह भी घर के नहीं, किसी ने दस-बारह रुपए दिए थे, कुछ लाने के लिए। मेरे पास तो दो-चार रुपए ही थे । बाकी के उस व्यक्ति के थे तो उसके पैसे भी इसमें चले गए, तो मैं परेशान हो गया था उस समय, तीन पत्ती में खो दिए सभी !
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प्रश्नकर्ता : तीन पत्ती ?
दादाश्री : तीन पत्ती का मतलब आज की तीन पत्ती नहीं, वह तो ज़रा यों ?
प्रश्नकर्ता : हाँ, ऐसे-ऐसे करते थे न, तीन पत्तों में ।
दादाश्री : हाँ, पहले जितवाते थे, एक-दो बार ।
प्रश्नकर्ता: हाँ, वे ऐसे-ऐसे करके फेंकते थे। लेकिन शुरू-शुरू में ऐसा दिखाते थे। पहले तो वे कहते थे कि 'लो पाँच आपके' । फिर दूसरी बार में दो देते थे ताकि हम में लोभ जागे । फिर कहते थे, 'हाथ मारो' ।
दादाश्री : हाँ, फिर से देते थे। लेकिन अपनी मति कमज़ोर पड़ जाती है न! क्या है यह सारी सेटिंग? कैसे समझें इन इंसानों को ? ग्यारह-बारह साल का बच्चा था । बच्चे तो सरल होते हैं । तो मौज-मज़े की जगह पर धोखा खा जाते हैं। अगर मौज-मज़े किए ही नहीं हों वे