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[4] नासमझी में गलतियाँ
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फिर बचपन में सभी बच्चे आम खाने जाते थे, तो उनके साथ-साथ हम भी बगिया में आम खाने जाते थे। तो एक लड़के पर दूसरा लड़का खड़ा रहता था और आम तोड़ता था। कई बार तो ज़रा सी दूरी की वजह से हाथ नहीं पहुँच पाता था, तब वे डरते थे कूदने से तो फिर पीछे से उसे ज़रा जोश दिलाते थे कि 'कूद, आम चाहिए तो कूद, नहीं तो उतर जा'। उसे हिम्मत देते थे तो फिर वह कूदकर आम तोड़ लेता था!
अब पेड़ किसी और का और आम हम लें, तो चोरी नहीं कहलाएगी? किसी और के पेड़ के आम खाएँ तो वह चोरी ही कहलाएगी न! फिर भी, मैं वहाँ खेत पर आम खाता था लेकिन कभी भी घर पर नहीं ले जाता था। मैं खाता ज़रूर था लेकिन घर पर नहीं ले जाता था। चरित्र अच्छा था, इतना जानता हूँ। मेरी भूमिका में चरित्र उच्च प्रकार का था, फिर भी चोरियाँ की हैं।
प्रश्नकर्ता : आम के अलावा और क्या खाते थे चुराकर?
दादाश्री : बचपन में हम चोरी करने खेत में जाते थे। खेत में बेर, कैथ, सौंफ वगैरह उगते थे। तब लड़कों के साथ जाकर चोरी करके लाते थे।
सब लडके जाते थे तो उनके साथ जाकर मालिक को बिना बताए कच्ची-पक्की सौंफ तोड़कर खाते थे।
प्रश्नकर्ता : उसका तो नुकसान हुआ न?
दादाश्री : ज़बरदस्त नुकसान! कहे बिना उस बेचारे की तो सौंफ तोड़ दी न? तो बाद में उसके लिए कितने ही पछतावे किए, तब जाकर साफ हुआ। तो बड़े होकर पछतावा करें उसके बजाय तो बचपन में ही साफ हो जाए तो क्या बुरा है?
___ भरे हुए मोह ने करवाई अँगूठी की चोरी
प्रश्नकर्ता : दादा, आपने वह बताया था न, अंगूठी का! तो वह क्या था?