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ज्ञानी पुरुष (भाग-1)
की थी क्या?' तब मैंने कहा, 'महेनत की लेकिन अब परिणाम नहीं आया तो उसमें मैं क्या करूँ? दिमाग़ नहीं चलता। ब्रेन खत्म हो गया है। अब कुछ नहीं आता। तब भाई ने कहा, 'पहले तो बहुत अच्छा आता था'। मैंने कहा, 'वह कुछ भी हो लेकिन ब्रेन खत्म हो गया है, बेकार हो गया है अब'। ____ तो बड़े भाई ने कहा, 'ले! इस वजह से तुझे नहीं आया। अरे! फेल हो गया। तुझे कुछ नहीं आता। सभी साल बिगाड़ दिए'। मैंने कहा, 'जो हुआ सो हुआ, अब आप जैसा कहेंगे वैसा करूँगा'। तब बड़े भाई ने कहा, 'तू तो फेल हो गया। अब क्या करेगा? तू अगले साल यह परीक्षा दे। खूब महेनत कर फिर से, और पास हो जा। तुझे विलायत जाना है।
मैंने ब्रदर से कहा, 'मुझे इसमें कुछ नहीं आएगा। कुछ अच्छा नहीं होगा। अतः इसमें मेरा और एक साल का नुकसान होगा। पाँच साल लग जाएँ फिर भी पास नहीं हो पाऊँगा बल्कि टाइम बेकार जाएगा। पहले कुछ दिन तक तो ब्रदर बोले, किच-किच की। फादर ने भी किच-किच की। हमने समझा कि भले ही किच-किच करें लेकिन हम तो छूट जाएँगे न!
'मेरा बिगड़ जाएगा' ऐसा भय नहीं था फिर मणि भाई ने कहा कि 'अब तुझे क्या करना है?' मैंने कहा, 'जो आप कहेंगे वही करेंगे। आपको ठीक लगे तो आप कहो वर्ना मैं तो अपनी तरह से कुछ भी कर लूँगा। मुझे जो ठीक लगेगा ऐसा कुछ भी ढूँढ निकालूँगा अपने लिए'।
मुझे इस प्रकार का कोई भी भय नहीं था कि मेरा कुछ बिगड़ जाएगा। कहा, 'जो आप कहेंगे वही करूँगा'। और हम तो चने-मुरमुरे की दुकान भी लगाकर बैठ जाएँगे, सौ रुपए लगाकर। उन दिनों सौ रुपए की पूँजी की ही ज़रूरत थी न?
तब फिर मैंने कह दिया, 'ज़्यादा तो कुछ नहीं आता। आप पैसे