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ज्ञानी पुरुष (भाग-1)
पूरी तरह से तोड़ देंगे। जिसकी मज़ाक उड़ाई उसे तो बिना कुछ किए ही दुःख भोगना पड़ता है और यह तो बहुत गलत है। मेरे साथ तो यही झंझट हुई थी कि 'बुद्धि बहुत बढ़ गई थी तो उसका ऐसा सब लाभ उठाया।
और उसी वजह से अपनी साँसें बंद हो जाती हैं, नहीं तो यह सब किसने किया? अंदर कौन सी कमी है साँसों की? हिसाब तो हमें चुकाने ही पड़ेंगे न? देखो न, कुर्सी पर बैठकर घूमते हैं न! और अन्य किसी प्रकार की परेशानी नहीं है, सिर्फ यही परेशानी है न! बाकी तो, दस घंटे तक काम हो सकता है, बैठे-बैठे बोलना हो तो! मेरे बोलते समय तो कोई ऐसा ही समझेगा कि दादा यह नाटक कर रहे हैं कुर्सी पर बैठकर!
प्रश्नकर्ता : लेकिन हमने तो मुख्य रूप से यही धंधा किया है।
दादाश्री : नहीं! लेकिन अभी भी उसके लिए प्रतिक्रमण कर सकते हो न! मैंने तो यही सब किया है न, मैंने भी यही किया है, इसीलिए हमारे वो मिल वाले भतीजे कहते हैं कि 'आप तो सलियाखोर (शरारत करके परेशान करने वाले) हैं', नहीं कहते क्या ऐसा?
सलियाखोर कहते हैं इसलिए मैंने कहा कि, बुद्धि आवृत थी तो क्या करते ? शरारत ही करते न!
अंतरायी हुई बुद्धि, इसलिए 'सलियाखोर' कहा उसने प्रश्नकर्ता : बुद्धि अंतरायी हुई थी, वह क्या है दादा?
दादाश्री : अंतरायी हुई बुद्धि ऐसा ढूँढ निकालती है। अंतरायी हुई बुद्धि क्या करती है ? शरारत करती है या नहीं?
उन दिनों बुद्धि अंतरायी हुई थी न, तो वह शरारत करके परेशान करती थी। बुद्धि में अंतराय होते हैं न, तो जब और कोई मज़ा नहीं आता तब परेशान करता है और फिर कहता है, 'मज़ा आ गया'। सली का मतलब क्या है ? खुद यहाँ पर बैठा है और पटाका वहाँ फूटता है