________________
[4] नासमझी में गलतियाँ
105
तो उसे कहते हैं सली! तो यह बुद्धि उल्टी-सीधी होती ही रहती थी न ! तब लोग ऐसा समझते थे कि यह सलियाखोर है और हम भी कहते हैं कि 'भाई, हम सलियाखोर ही थे'।
प्रश्नकर्ता : आप सीधी सली (पॉज़िटिव शरारत) भी करते होंगे
न
दादाश्री : सीधी सली भी करते थे, लेकिन वह कम! ज़्यादातर तो उल्टी। सीधी की तो कुछ पड़ी ही नहीं थी न! और उल्टी तो कहाँ तक कि कोई आदमी नहीं मिले तो आखिर में किसी बच्चे को सिखाता था कि 'अरे, उस गधे के पीछे खाली डिब्बा बाँध दे'।
अरे! गधे के पीछे तो हम सब बच्चों ने मिलकर डिब्बे भी बाँधे हैं। फिर पूरी रात वह गधा उछल-कूद ही करता न! तो पूरी रात शोर होता था। लोगों को सोने ही नहीं देता था फिर, लोगों को नींद नहीं आती थी। एक तो लोगों के पास कोई काम-धंधा नहीं था, बेकार थे। तो (आवाज़) सुनाई देते ही देखते थे कि 'यह क्या हुआ? अरे! यह तो गधे के पीछे डिब्बा बाँधा हुआ है!'
गधे की पीठ पर खाली डिब्बा बंधवा देते थे और फिर पीछे से वे बच्चे उसे भगाते थे। तो इस तरह पूरे गाँव में शोर शराबा हो जाता था। फिर लोग गालियाँ देते थे कि 'इन लड़कों का सत्यानास हो!' इस तरह से बुद्धि का पूर्ण दुरुपयोग हुआ था। आपको तो यह सब नहीं आता था न?
यह सब ऐसा है, ये सारे संस्कार गाँव वाले हैं! और हम तो मूल रूप से बिल्कुल टेढ़ी जाति, झगड़े करना अच्छा लगता था, यह तो ज्ञान मिला तो अब सब रास्ते पर आ गया है।
कुसंग के रास्ते पर चल पड़े दोस्तों के संग प्रश्नकर्ता : दादा, खराब आदतें थी बचपन में ? दादाश्री : हाँ, पंद्रह साल की उम्र में हमें कुसंग में बीड़ी पीने