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[2.2] मैट्रिक फेल
भी ऊपरी नहीं चाहिए'। वह कैसे पुसाएगा ? यानी मैंने उसे स्वीकार ही नहीं किया था इसीलिए मैट्रिक में फेल हुआ था । अब मैट्रिक में फेल हो जाते, ऐसा तो नहीं था । यों आता तो सब था, ब्रिल्यन्ट था । दिमाग़ तो बहुत अच्छा था लेकिन जान-बूझकर फेल हो गया।
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जान-बूझकर कोई फेल हो सकता है ? हम पर जो बीती वह हम ही जानते हैं। हमारा दिमाग़ सुन्न हो गया परीक्षा देकर । हम जानते हैं न, कि हम पर क्या बीती । क्या हम नहीं जानते थे ?
जिसके पास संतोष रूपी धन है उसे क्या दुःख ? प्रश्नकर्ता : लेकिन मैट्रिक में फेल होने के बाद में फिर क्या
किया ?
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दादाश्री : फिर हमारा घर का बिज़नेस था कॉन्ट्रैक्ट का । मेरे बड़े भाई कॉन्ट्रैक्ट का बिज़नेस करते थे। तो मैंने कहा कि यदि भाई इतनी अच्छी तरह से, इज़्ज़त से करने देंगे तो हम इनके साथ बिज़नेस करेंगे और यदि ब्रदर नहीं करने देंगे, अपमान ही करते रहेंगे तो हम पान की दुकान खोल लेंगे।
साथ ही यह भी तय किया कि यदि फादर या ब्रदर पैसा नहीं देंगे तो? हम अगर भाई की कोई बात नहीं मानेंगे तो फिर भाई छूने ही नहीं देंगे तो ? अगर भाई सहयोग नहीं देंगे, असहयोग करेंगे तो मित्र से कुछ पैसे लेकर, पचास रुपए लेकर पान की दुकान खोल लूँगा, ऐसा तय किया था। उन्हें मुझे बिज़नेस में लगाना होगा तो लगाएँगे वर्ना हम अपनी पान की दुकान खोल देंगे ।
जिनके पास बचपन से ही संतोष रूपी धन है, उन्हें क्या दुःख हो सकता है ? ज्ञान नहीं था फिर भी संतोष रूपी धन था ।
मुक्त होने के लिए सुन ली थी किच-किच
मैट्रिक में फेल हुआ तब फिर ब्रदर ने कहा, 'फेल हो गया ?' मैंने कहा, ‘हाँ’। फिर ब्रदर ने कहा, 'तू फेल क्यों हो गया? महेनत नहीं