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[2.2] मैट्रिक फेल
तब बुद्धि के आशय में पढ़ाई नहीं थी, आत्मा ढूँढ निकालना था इसलिए मैट्रिक में फेल हो गया। बुद्धि के आशय में नौकरी करने की इच्छा नहीं थी कि 'बस, नौकरी नहीं करूँगा'। तो नौकरी नहीं की और कॉन्ट्रैक्ट का बिज़नेस किया। यानी कि सबकुछ बुद्धि के आशय के अनुसार होता है।
___ व्यवहार से मैट्रिक फेल, अध्यात्म में टॉप
लोग मुझसे कहते, 'दादा, आपने कहाँ तक पढ़ाई की है?' वह साइन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडेन्स, द वर्ल्ड इज़ द पज़ल इटसेल्फ, देयर आर टू व्यू पोइन्ट्स, ऐसा सब कहते हैं न, इसलिए।
प्रश्नकर्ता : और वह शब्द भी आता है न, आपकी किताब में, 'डिस्चार्ज होने देना लेकिन चार्ज मत होने देना'।
दादाश्री : हाँ! ये इतने शब्द लेकिन लेंग्वेज हाई हो गई न! तब फिर सभी मुझसे पूछते हैं कि 'दादा तो बहुत हाइ लेंग्वेज बोलते हैं न, बहुत पढ़े-लिखे लगते हैं। ये दादा तो ग्रेज्युएट से भी बहुत आगे पढ़े
होंगे।
लोग मुझसे पूछते हैं कि 'दादा जी, आप कहाँ तक पढ़े हैं ?' मैंने कहा, 'भाई, वह बात बताने में मज़ा नहीं है। ज्यादा नहीं पढ़ा हूँ भाई'। तब कहते हैं, 'लेकिन कहिए तो सही कितना पढ़े हैं?' मैंने कहा, 'तो आपको कहाँ तक की कल्पना है?' तो कहते हैं, 'ग्रेज्युएट से भी आगे गए होंगे'। मैंने कहा, 'मैं बहुत ज़बरदस्त पढ़ा हूँ! मैं मैट्रिक फेल हुआ हूँ, 1927 (विक्रम संवत 1983-84) में'।
प्रश्नकर्ता : व्यवहारिक दृष्टि से मैट्रिक फेल हुए हैं लेकिन आध्यात्मिक दृष्टि से तो टॉप पर हैं।
दादाश्री : उसका अंत ही कहाँ आता! आध्यात्मिक दृष्टि से तो जहाँ तक कोई नहीं पहुँचा है, वहाँ तक पहुँचा हूँ इसीलिए तो कवि ने लिखा है, 'ऊपरी के भी ऊपरी, फिर भी निमित्त!'