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[4] नासमझी में गलतियाँ
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वगैरह। मुझे मज़ाक उड़ाने की बहुत आदत थी। क्या आपने बचपन में किसी का मजाक उड़ाया है? मैंने तो बहुत उड़ाया है, भाई।
मुझे तो अभी भी वह सब नक्शे की तरह दिखाई देता है। जैसे नक्शे में न्यूयोर्क दिखाई देता है, शिकागो दिखाई देता है वैसा दिखाई देता है। इसलिए मन में ऐसा होता है कि, 'अरेरे! कैसे-कैसे दोष! मज़ाक यानी बहुत नुकसानदेह नहीं, लेकिन सामने वाले के मन पर तो असर होता था न! सामने वाले को दुःख होता था न बेचारे को, लेकिन अब उस समय वह हमें पता ही नहीं था न, होश ही नहीं था न!
तो हम भी पुराने मंदिर वालों का (बुजुर्गों की) मज़ाक उड़ाते थे। हम भी बूढ़े बुजुर्ग लोगों का मज़ाक उड़ाते थे। तो क्या अब मैं बूढ़ा नहीं हूँ? क्या कोई मेरी नहीं उड़ाएगा? उन्हें बुरा लगता था फिर भी मज़ाक तो उड़ाते ही थे न! बच्चों को क्या?
अब मेरी उम्र वालों की आँखें तो बेचारों की कमज़ोर हो चुकी होती है। अगर लोग मेरे कमरे में दो-चार पिल्ले छोड़ दें तो मेरी क्या दशा होगी? वैसा ही उन बूढ़े बुजुर्गों को हुआ होगा, जब हम वहाँ पर पिल्ले छोड़कर आ जाते थे। अब मैं सोचता हूँ कि 'ऐसा कैसा किया हमने? यदि कोई हमारे साथ ऐसा करें तो क्या होगा?'
फिर वे बुजुर्ग पूरी रात चिल्लाते रहते कि 'ये बच्चे मर भी नहीं जाते। मेरे यहाँ पिल्ले छोड़ गए'। लेकिन अब समझ में आता है कि यह सब गलत किया था। उन दिनों कैसी भूलें की थीं! बचपन में, छ:-सात साल की उम्र में तब क्या नहीं करते बच्चे?
सीखे गलत गुरुओं से मज़ाक उड़ाना प्रश्नकर्ता : दादा, आप छोटे थे तब से गड़बड़ी वाले थे? दादाश्री : सभी गड़बड़ी वाले ! मैं अकेला ही ऐसा नहीं था।
प्रश्नकर्ता : आप सभी बातों में अव्वल लगते हैं। उसी तरह, जैसे ज्ञान के शिखर पर आ पहुँचे।