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[2.2] मैट्रिक फेल
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समझ गए सूबेदार बनाने के पीछे का स्वार्थ
तो यह बात सुनी तो मुझे चिढ़ मची कि 'ये लोग मुझे सूबेदार क्यों बनाना चाहते हैं ?' तो मुझे तुरंत ही विचार आया कि मुझे सूबेदार बनाएँगे तो इन्हें क्या फायदा? तो ये अपने किस फायदे के लिए सूबेदार बनाना चाहते हैं? इसमें हर एक का स्वार्थ होता है न, कि ये फादर क्यों मुझे सूबेदार बना रहे हैं? मैं सूबेदार बन जाऊँगा तो फादर को क्या फायदा? फादर का क्या स्वार्थ है ?
तो मैंने इस पर सोचा, अब उन दिनों पंद्रह साल की उम्र में फिर मुझे समझ में आया, तो मैं सूबेदार बनाने के पीछे का आशय समझ गया। उनके मन में ऐसा था कि, 'मेरा बेटा सूबेदार बनेगा तो मैं इस तरह से पहचाना जाऊँगा कि 'मेरा बेटा सूबेदार है!' तब फिर जीवन जीने का मज़ा आएगा न! और जीवन जीने की कला मिल गई कि मेरा बेटा सूबेदार है, कितना होशियार है! इस तरह रौब रहेगा। इस तरह, उस कैफ को लेकर घूमेंगे। तो यह ऐसा कुछ सूबेदार बन जाए तो मैं सूबेदार का बाप कहलाऊँगा न! लोग कहेंगे न, कि 'ये उस सूबेदार के फादर आए!" ओहोहो! यानी कि अगर मैं सूबेदार बन जाऊँ तो इनकी इज़्ज़त बढ़ेगी तो मैं समझ गया था कि फादर खुद की इज़्ज़त बढ़ाना चाहते हैं।
तब फिर वे अच्छी पगड़ी वगैरह पहनकर घूमेंगे न! अगर बेटा सूबेदार हो तो नहीं घूमेंगे क्या? बेटा सूबेदार होगा तो घूमेंगे न? और सभी चाचा भी ऐसे ही घूमेंगे। चाचा भी कहेंगे कि 'मेरा भतीजा सूबेदार है'। तो मैंने सोच लिया कि फादर को ऐसा बनने की इच्छा है कि 'हमारी कीमत कुछ बढ़ जाए! लोग मेरी इज़्ज़त करें!'
फिर हुआ कि भाई को ऐसा क्यों हैं? ब्रदर के मन में ऐसा होगा कि 'मेरा छोटा भाई सूबेदार है ! मन में तो अंदर रौब रहेगा फिर। हमारी इज़्ज़त बढ़ेगी, कमाएगा तो हम खर्च करेंगे, मज़े करेंगे'। यानी कि वे ये सारी बातें मज़े उड़ाने के लिए कर रहे हैं।
वे जेठा भाई सूबेदार हैं न, तो उनका देखकर मन में ऐसा होता