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[2.2] मैट्रिक फेल
मुझे सूबेदार बनाना चाहते हैं ये लोग', यह मैं समझ गया था । इसमें उनकी दानत खराब है, मेरी दानत ऐसी खराब नहीं है ।
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हमने इसलिए जन्म नहीं लिया है कि कोई हमें झिड़के
मैं तो बहुत स्वतंत्र मिज़ाज का था इसलिए मैंने सोचा कि यदि मुझे सूबेदार बनाएँगे तो मेरे ऊपर सरसूबेदार होगा या नहीं होगा ? वह डाँटेगा या नहीं डाँटेगा ? बेकार ही सरसूबेदार मुझे झिड़केगा । अतः मुझे सरसूबे का सुनना पड़ेगा। सूबेदार बनूँगा तो मुझे उन्हें ‘साहब जी' कहना पड़ेगा। वह सरसूबेदार मुझे गालियाँ देगा, डाँटेगा । मन में ऐसा सब घुस गया था। कोई डाँटे तो मुझे अच्छा नहीं लगेगा। हमें यह सब नहीं चाहिए। हमें यह धंधा नहीं करना है । तभी से मुझे तो उपाधि ( बाहर से आने वाला दुःख) हो गई।
वह अपनी पत्नी से लड़कर आया होगा न, तो हमारे ऊपर चिढ़ता रहेगा। अरे मुए, मैं यह नहीं जानता था कि तू मुझे डाँटेगा वर्ना इस्तीफा देकर चला जाता। तेरी सरकार तेरे घर पर रही और तू तेरे घर, हम तो ये चले! हमने कोई झिड़की खाने के लिए जन्म नहीं लिया है, भाई । क्या हमने इसलिए जन्म लिया है कि तू हमें झिड़के ? ऐसा तो तू क्या दे देगा ?
नहीं चाहिए कुछ भी, फिर ऊपरी क्यों ?
वह सूबेदार हमें डाँटेगा तो कैसे पुसाएगा ? मैंने सोचा, 'मुझे यह नहीं चाहिए। भाई, मुझे सूबेदार नहीं बनना है'। तो उसके बजाय सूबेदार की यह वाली जगह अच्छी है या नहीं ?
प्रश्नकर्ता : यह सूबेदार नहीं कहलाएगा, दादा ।
दादाश्री : हं ?
प्रश्नकर्ता : यह तो सूबेदारों का सूबेदार, सरसूबेदार !
दादाश्री : मुझे कोई नहीं डाँटे । डाँटने वाला नहीं चाहिए, बॉस
नहीं चाहिए। मुझे दुनिया का बॉस भी नहीं चाहिए क्योंकि बड़ी मुश्किल