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ज्ञानी पुरुष (भाग-1)
से यह जन्म मिला है फिर वहाँ पर भी फिर कोई डाँटने वाला मिल गया। छोड़ भाई, शायद ही कभी मनुष्य का जन्म मिलता है और तू वापस डाँटने वाला निकला! तो भाई ऐसे जन्म का क्या करना है, यदि डाँटने वाला मिल जाए तो? हमें कोई मौज-मज़े की चीज़ नहीं चाहिए फिर भी हमें डाँटेगा। जिसे मौज-मज़े की चीज़ की ज़रूरत हो उसे भले ही डाँटने वाले मिलें लेकिन मुझे तो ऐसा कुछ भी नहीं चाहिए था। इसलिए मैंने तय किया, चाहे मैं पान की दुकान खोल दूंगा लेकिन इस तरह डाँटना नहीं चलेगा।
मुझे जितना चाहिए उतना ही खाना है भाई, क्या बहुत सारा खा जाएँगे? इतना सा खा पाते हैं और डाँटने वाले बहुत सारे, ऐसा तो मुझे नहीं पुसाएगा। इसलिए मैंने सोचा, 'यह रास्ता मुझे अच्छा नहीं लगेगा'।
यानी मैं बचपन से ही सावधान हो गया था। मुझे बॉस नहीं मिलना चाहिए। पिछले जन्म में बॉस की बात से मुझे कोई मज़ा नहीं आया होगा इसलिए पहले से ही चिढ़ थी कि मुझे बॉस नहीं चाहिए। मैंने तो पढ़ते समय ही तय कर लिया था कि मुझे सिर पर सरसूबेदार नहीं चाहिए। बेकार ही, बिना बात के सूबेदार डाँटेगा! मुझे कोई डाँटे, तो ऐसा आइ डोन्ट वॉन्ट (मुझे नहीं चाहिए)। यह सब क्यों भला? सिर्फ लालच के लिए न? किस चीज़ का लालच? लेकिन उसका क्या करना है ? मन का भिखारीपन है एक तरह का!
कोई लालच हो तभी ऊपरी रखते हैं, मुझे कोई लालच नहीं है। मैं लालची नहीं हूँ। मुझे क्या लेना है कि सूबेदार मुझे डाँटे? वह इसीलिए न, कि तीन सौ रुपए की तनख्वाह के लिए जा रहा हूँ? मुझे तीन सौ की तनख्वाह नहीं चाहिए। बॉस डाँटता है रुपयों के लिए। आग लगे तेरे रुपए को!
घर में क्या ऊपरी कम हैं जो नए ऊपरी बनाऊँ ?
जिनसे शादी की है उनसे ऐसा कह दूँगा कि 'थोड़ा मिले न, तो हम थोड़े में समावेश कर देंगे'। हीरा बा से शादी तो की न! एक तो मैंने शादी की, वह मुझसे भूल हुई लेकिन यह फिर नया संबंध बढ़