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[2.1] पढ़ाई करनी थी भगवान खोजने के लिए
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अस्तित्व का कोई प्रमाण दे तू मुझे। क्या प्रमाण नहीं होना चाहिए? लेकिन फिर मुझे एक चीज़ पर से भगवान मिल गए। बचपन से दर्शन इतना हाई था कि लघुत्तम सीखते हुए मुझे भगवान समझ में आ गए।
जब मैं चौदह साल का था, तब स्कूल में एक मास्टर जी मिल गए थे। वे मुझे गणित में लघुत्तम सिखाने आए। लघुत्तम सीखने के लिए इतनी रकमें आपको दी हैं, इनमें से लघुत्तम ढूँढ निकालो', उन्होंने कहा। ऐसी पाँच-दस संख्याएँ देते और पूछते थे। तब मैंने मास्टर जी से पूछा, 'यह फिर क्या? लघुत्तम द्वारा आप क्या कहना चाहते हैं ? लघुत्तम किस तरह से आता है ?' तब उन्होंने कहा, 'ये जो सारी संख्याएँ दी हैं, इनमें जो सब से छोटी अविभाज्य रकम है, वह लघुत्तम है। ऐसी संख्या जो इन पाँच-दस संख्याओं में सामान्य है और अविभाज्य है। वे, इस प्रकार से छोटे बच्चे की भाषा में होता है न, ऐसे शब्दों में कह रहे होंगे। अविभाज्य यानी जिसमें फिर से भाग न लगाया जा सके ऐसी, जिसके फिर से भाग नहीं किए जा सकें ऐसी छोटी से छोटी रकम ढूँढ निकालनी थी।
प्रश्नकर्ता : उसमें भाग नहीं लगाया जा सकता।
दादाश्री : फिर उसमें भाग नहीं लगाया जा सकता, अविभाज्य होती है। चार हो तो विभाजन हो सकता है, आठ हो तो विभाजन हो सकता है, नौ हो तो विभाजन हो सकता है, सौ हो तो विभाजन हो सकता है लेकिन पाँच का विभाजन नहीं हो सकता, सत्रह का विभाजन नहीं हो सकता, ग्यारह का विभाजन नहीं हो सकता। कुछ-कुछ ऐसी संख्याएँ हैं।
अर्थात् ऐसा कुछ ढूँढ निकालो, इन सब में। ऐसी एक रकम सभी में है लेकिन वह लघुत्तम भाव से हैं। उसे खोज निकालना है। उन दिनों सभी लोगों को वह करना आता था लेकिन मुझे तो नहीं आया और इस तरह सोचता रहता था।
प्रश्नकर्ता : कैसे विचार?