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ज्ञानी पुरुष (भाग-1)
दादाश्री : वह तो ऐसा है न, बचपन में मेरा नाम वास्तव में गला भाई नहीं था। गला भाई नाम के पीछे तो कारण है।
प्रश्नकर्ता : क्या कारण है, दादा?
दादाश्री : हमारे पड़ोस में एक अंबालाल भाई रहते थे, अंबालाल मोती भाई करके। उनकी वाइफ का नाम पुनी बा था। वे मेरी माता जी से ज़रा दस साल ही छोटी थीं। तो पुनी बा रोज़ मुझे गोदी में उठाकर अपने घर ले जाती थीं। बा स्थूलकाय थीं फिर भी मुझे ले जाती थीं। वे गाल पर हाथ फेरती थीं, खुश हो जाती थीं।।
उन्हें प्यार आता था तो बहुत अच्छा-अच्छा खिलाती थीं और फिर मैं अपने घर आ जाता था। बाद में जब फिर से जाता था तब मैं बाहर से दरवाज़ा खटखटाता था, अंदर पैसेज जैसा था, बाहर दरवाजा खटखटाना पड़ता था। 'कौन है?' पुनी बा जब अंदर से ऐसा पूछतीं तब मैं कहता, 'मैं हूँ'। वे वापस पूछती, 'कौन है?' तब मैं ऐसा कहता था 'मैं अंबालाल'। उनके पति का नाम भी अंबालाल था, तो वे क्या करती थीं कि वे जब रोज़ बाहर से दरवाज़ा खटखटाते थे तब अंदर से पुनी बा पूछती थीं, 'कौन आया? कौन है?' तब वे कहते थे, 'मैं अंबालाल'। इसलिए फिर मैं उनकी नकल करता था, 'मैं भी अंबालाल हूँ न!' तब वे कहतीं, 'आया बड़ा
अंबालाल! तू तो मुझे उलझन में डाल देता है न! तू अंबालाल कहता है तो फिर मुझे तो ऐसा ही लगता है न, कि मेरे पति आए हैं!' फिर बा से कहती थीं, "यह मुझे बहुत प्यारा है इसलिए इसका नाम 'गलो' रसूंगी।" गलगोटे (गेंदे का फूल) जैसा दिखाई देता था, तब शरीर बहुत अच्छा था! इसलिए वे 'गलु, गलु' कहकर बुलाती थीं। इस तरह मेरा नाम 'गला' पड़ गया।
प्रश्नकर्ता : आपके सभी मित्र हमें बताते हैं कि बाहर 'गिल्ली डंडा खेलने जाते थे। फिर पपीता तोड़कर लाते थे और गेहूँ में दबा देते थे, और बाद में खाते थे'। फिर कहते हैं, 'दादा यों हाथ लंबा करते थे तो छोटे-छोटे चार-पाँच बच्चे यों लटक जाते थे। इतने मज़बूत थे, दादा। गलका (एक तरह की लौकी जैसी सब्जी-स्पंज लौकी) जैसे थे इसलिए गला काका कहते थे।