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[1.3] बचपन से ही उच्च व्यवहारिक सूझ दिमाग़ चढ़ जाता था 'सात समोलियो' सुनकर
मुझे तो एक दूसरा उपनाम भी दिया गया था। जानते हो, लोग बचपन में मुझे क्या कहते थे? पाटीदारों ने एक नाम रखा था कि "इन सब लड़कों में से यह लड़का 'सात समोलियो' है।" यह पुराने जमाने की बात कर रहा हूँ। आजकल इन शब्दों का उपयोग नहीं होता। आपने नहीं सुना है 'सात समोलियो' ?
प्रश्नकर्ता : ‘सात समोलियों' का अर्थ क्या है, दादा?
दादाश्री : हाँ, यानी कि जब बैल को जुताई के लिए ले जाते थे न, तब समोल (खूटी) डालते थे। उसमें दो बैलों के सिर डालने होते हैं न?
प्रश्नकर्ता : ठीक है, समोल, वे जो हल में आते हैं।
दादाश्री : तो मुझे 'सात समोलियो' कहते थे। तब फिर उन्हीं चाचा जी से मैं पूछने जाता था कि 'सात समोलियों' का मतलब क्या है? तो उन चाचा जी ने मुझे समझाया कि 'देखो, यह जो बैल होता है न, उसे खेती-बाड़ी के लिए हल में जोतते हैं। तब फिर वह खेती वाली ज़मीन की जुताई करता है, लेकिन यदि कुँवे से पानी खींचना हो तो, खुर पटककर हंकारता है और शायद दो-चार-पाँच हल भी खींच लेता है लेकिन सातवीं जोत चक्की खींचने की है, वह तो उससे हो ही नहीं पाता। जो बैल ये सभी कार्य कर लेता है उसे 'सात समोलियो' कहते हैं, तो कोई-कोई बैल ही ऐसा होता है। अतः ‘सात समोलियो' इंसान सभी प्रकार के काम कर सकता है।