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[1.3] बचपन से ही उच्च व्यवहारिक सूझ
तो घर में रहकर पढता है, तब भी अंदर हिसाब लगाता रहता है कि अपनी आमदनी कितनी है ? खर्चा कितना है? माँ-बाप पर कितना भार पड़ रहा होगा, ऐसा सारा हिसाब उसके पास रहता है और किताबें शुरू से ही कम लाता है ताकि माँ-बाप पर भार न पड़े। जबकि एक समोल वाले में है कोई ऐसी सूझ?
मुझे सात समोलियो कहते थे। यह बताना नहीं चाहिए फिर भी मैंने अभी बता दिया। सात समोलियो पढ़ाई करता जाता है और ये सारे काम भी करता है। माँ-बाप की सेवा भी करता जाता है। वह सिर्फ एक ही प्रकार का काम नहीं करता, अंदर हर एक प्रकार का ध्यान रखता है। घर में माँ-बाप की स्थिति क्या है, पैसा किस तरह से आता है, कहाँ जा रहा है, कहाँ पर नुकसान हो रहा है, माँ-बाप को क्या परेशानी हो रही होगी, वह सभी उसके ध्यान में रहता है।
जबकि यहाँ (एक समूल वाले को) तो माँ-बाप कहते हैं, 'अरे! ज़रा इतना तो सोच, मेरी तबियत नरम है'। तो कहता है, 'मैं स्कूल जाऊँ या आपके बारे में सोचूँ'। और सात समोलिया तो इसी सोच में रहता है कि स्कूल से जल्दी घर आकर वापस घुस जाऊँ सेवा में।
और आजकल के लड़के तो ऐसी सेवाएँ ही कहाँ करते हैं? उन्हें बाकी और कुछ नहीं है लेकिन निंदा योग्य नहीं हैं। ये बच्चे अच्छे हैं। इनकी वजह से तो अपना पीढ़ियाँ सुधर जाएँगी। इनकी कोख से अब देवता जन्म लेंगे! भले ही ये कोयले हैं लेकिन अब देवता जन्म लेंगे। मुँह पर उन्हें कोयला मत कहना। ज़रूरत है दो शांत पीढ़ियों की, बिल्कुल शांत। आज के बच्चे हैं सिर्फ पढ़ाई में, व्यवहारिक सूझ में नहीं
मुझे एक व्यक्ति कह रहा था, 'आपके समय में लोग मैट्रिक पास होते थे और आज के बच्चे तो एकदम से एल.एल.बी बन जाते हैं।
प्रश्नकर्ता : हाँ।
दादाश्री : मैंने कहा, 'हमें नहीं आया, वह अलग चीज़ है और ये बच्चे एल.एल.बी हुए, वह भी अलग चीज़ है'। आज के बच्चों को