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ज्ञानी पुरुष (भाग-1)
या नहीं? कोई पाँच समोलियो, कोई चार समोलियो लेकिन समोल वाले होते थे। ये सभी पढ़े-लिखे लोग तो एक समोलिया हैं।
प्रश्नकर्ता : वह ज़रा ज़्यादा समझाइए, दादा।
दादाश्री : ये एक या दो समोल वाले ही पास होते हैं, सात समोल वाला पास नहीं होता। यह तो, मैं जैसे-तैसे करके पास हो जाता था। मास्टर जी को डरा-धमकाकर, कुछ भी करके।
आपने स्कूल में पढ़ाई की तो वह एक ही लाइन, वन कोर्नर ! इतने बड़े राउन्ड में से सिर्फ एक ही पॉइन्ट दिखाई देता है तो उसमें पास हो ही जाता है। मेरे जैसा पास नहीं हो सकता स्कूल में। एकाग्रता नहीं रहती न! 'सात समोलियों को सभी तरफ का सोचना होता है तो उनसे पढ़ाई नहीं हो पाती।
प्रश्नकर्ता : उसे इसमें एकाग्रता नहीं आ पाती।
दादाश्री : मैं मैट्रिक में फेल हुआ था न, तो मुझे किस आधार पर संतोष था कि 'भाई, मुझे क्यों नहीं आया?' क्योंकि सात समोल हैं, 'सात समोलियों'। शायद ही कोई इंसान ‘सात समोलियों' होता है, जो सब झेल सके। मेरे साथ कुछ चालीस-पचास साल के लोग खड़े हों न,
और मैं बारह साल की उम्र वाला, तब भी कहते थे 'यह लड़का कितना विचक्षण है'। आपकी बात सुनकर मैं समझ सकता था कि आप आमनेसामने क्या कह रहे हो, पढ़ाई नहीं आती थी कुछ भी। पढ़ता ही नहीं था न!
प्रैक्टिकल थे और ध्यान रखते थे हर तरफ का
प्रश्नकर्ता : दादा, ऐसे भी लोग देखे हैं जो पढ़ाई की किताबें पढ़ते हैं, पहले नंबर से पास होते हैं और जब प्रैक्टिकल लाइफ में आते हैं, तब वहाँ पर कुछ भी नहीं होता, खत्म ही हो जाता है सब।
दादाश्री : उनमें नमक भी नहीं होता, ज़रा सा भी नमक नहीं होता, उनमें। 'सात समोलिया' में ज़्यादा नमक होता है। सात समोलिया