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[1.2] निर्दोष ग्राम्य जीवन
वह तो जब मैंने झबेर बा से पूछा कि 'दादा जब छोटे थे तब कैसे दिखाई देते थे?' तब मुझे बताया कि गलगोटे (गेंदे) जैसे थे इसलिए गलो नाम रखा था।
दादाश्री : उसे मिटाते-मिटाते तो बहुत साल लगे। अब लोग 'अंबालाल' कहकर बुलाते हैं।
दस साल तक की उम्र फिर भी रहते थे दिगंबरी
हमारे मुहल्ले में सभी दस-ग्यारह साल के बच्चे दिगंबरी ही रहते थे। वे जब नहाने जाते थे तब सभी कपड़े निकालकर ही जाते थे ताकि कपड़े भीगे नहीं।
प्रश्नकर्ता : दिगंबर?
दादाश्री : हमारा तो वैष्णव धर्म में जन्म हुआ था न, इसलिए श्वेतांबर-स्थानकवासी या बाकी सभी संप्रदायों के बारे में हमने बचपन से कुछ भी नहीं सुना था लेकिन दिगंबर शब्द शुरू से ही सुना था। क्योंकि उस ज़माने में छोटे बच्चों को कपड़े पहनाने का, चड्डी पहनाने का सिस्टम नहीं था। उस ज़माने में छोटे बच्चों को कपडे नहीं पहनाते थे। कपड़ों की बहुत कमी थी इसलिए कपड़े नहीं पहनाते थे यों ही दिगंबर घूमते रहते थे।
दूध पीते बच्चे थे तब से लेकर दस साल की उम्र तक तो नंगे ही घूमे थे और लोग भी दिगंबरी कहते थे। कहते थे, 'दिगंबरी आया।
___पुनी बा क्या कहती थीं? 'लो, वह दिगंबर वापस आ गया!' मैंने कहा, 'दिगंबर क्यों कहती हैं ?' अब, दिगंबरी साधु इस तरह घूमते हैं इसलिए दिगंबरी ही कहेंगे न !
हाँ, तो दिगंबर बनकर घूमते रहते थे बच्चे। इसलिए यदि कोई स्त्री जरा तेज़ हो तो वे कहती थीं, 'अरे भाई, यह दिगंबर की तरह घूमता रहता है। अरे! गरमी लगती है क्या तुझे?' ऐसा कहती थीं। फिर भी वह बच्चा घर आकर कपड़े निकाल ही देता था और मुहल्ले में घूमने चला जाता था। अब इन्हें क्या कहें?