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[1.1] परिवार का परिचय
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रोज़ खाएँ, ऐसे लोग। यों ही बिना बात के खुमारी (गौरव, गर्व, गुरूर) भरते रहे! लेकिन उन दिनों मुझ में खुद में ही खुमारी थी, मुझे अच्छा लगता था।
व्यवहार में यह चल ही नहीं सकता न! हम उस रिश्ते की निंदा करने नहीं बैठे हैं। यह तो पिछले जन्म की हमारी कमज़ोरी का प्रदर्शन है। हम उसकी निंदा नहीं कर सकते। व्यवहार में जो ज़रूरी हैं, नेसेसिटी है, क्या उसकी निंदा होनी चाहिए? यह तो एक प्रकार की चिढ़, उस वजह से ऐसा था। चिढ़ घुस चुकी हो, तभी न!
कोई भी लालच नहीं, ऐसी ग़ज़ब की खुमारी प्रश्नकर्ता : तो आपने बात की न, कि आपको खुमारी बहुत अच्छी लगती थी।
दादाश्री : हाँ, खुमारी बहुत अच्छी लगती थी। कोई पैसे ठग जाए तो कोई हर्ज नहीं, लेकिन मुझे खुमारी दिखाए तो बस, खुश! ऐसा ही इन्टरेस्ट था। हाँ, खुमारी के सामने पैसा छोड़ देते थे। यदि खुमारी मिले तो पैसा छोड़ देते थे।
प्रश्नकर्ता : तो आपके बचपन की ऐसी कोई खुमारी वाली बात हो तो बताइएगा।
दादाश्री : एक सन्यासी जैसा आया था, उसने हमारी माँ जी से कहा कि 'यह पुण्यशाली लड़का है, इसके लिए कुछ विधियाँ करवाने की ज़रूरत है। तो इससे बा एकदम गद्गद हो गए कि 'मेरा बेटा इतना पुण्यशाली! विधियाँ करनी हो तो करवा दूंगी'। इसलिए वे खर्चा पूछने लगीं। उसने कोई ज़्यादा खर्चा नहीं बताया, सौ-डेढ़ सौ रुपए खर्चा बताया लेकिन उन दिनों सौ-डेढ़ सौ रुपए का मतलब अभी के एक हज़ार जैसे। बीस रुपए का सोना आता था तब तो। इसलिए फिर उस नन्हीं उम्र में मैंने बा से कहा, 'विधियाँ वगैरह मत करवाना'। लेकिन बा ने उससे कह दिया था इसलिए वह वापस आया। तब मैंने कहा, 'आप यहाँ पर आते हो न, लेकिन आपका चक्कर लगाना बेकार जाएगा क्योंकि