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[1.1] परिवार का परिचय
में जाएँगे ही न?' मैंने कहा, 'नहीं, ऐसा नहीं है। आप पुरुषार्थ करोगे तो हो पाएगा। ऐसा नहीं है कि दादा से ज्ञान लिया और दादा के कुटुंब में जन्म लेने से ही वैसा हो जाएगा। आपके ऊपर कृपा ज़्यादा रहेगी। कृपा ज़्यादा क्यों रहेगी? क्योंकि ब्लड रिलेशन है। जल्दी हल आ जाएगा। लेकिन उसका उल्टा अर्थ नहीं लगाना चाहिए। खुद को आज्ञा का पालन तो करना ही पड़ेगा। ऐसा नहीं हो सकता कि आज्ञा पालन किए बिना कोई व्यक्ति मोक्ष में जा सके। सात पीढ़ियों से किसी को 'साला' बनना अच्छा नहीं लगता था
प्रश्नकर्ता : दादा की कोई बहन नहीं है?
दादाश्री : बहन भी नहीं है, बुआ भी नहीं है। पिता जी की बुआ नहीं थीं, दादा की भी बुआ नहीं थीं, उनके दादा की भी बुआ नहीं थीं। सात पीढ़ियों से बेटी ही नहीं थी। मैंने बचपन में इस बारे में जाँच की थी कि इसका क्या कारण है ? तो दो पीढ़ियाँ देख लीं। उन सभी पीढ़ियों को साला बनना अच्छा नहीं लगता था। किसी को भी साला बनना अच्छा नहीं लगता था। बहनोई बनना अच्छा लगता था लेकिन साला बनना अच्छा नहीं लगता था। मैंने कहा, 'कहना पड़ेगा यह तो!' लेकिन यह तो हमारी पीढ़ी में पटेलों के यहाँ देखा।
मेरी सात पीढ़ियों में कोई भी साला नहीं बना था, ऐसी फैमिली का इंसान हूँ। बाप दादा भी ऐसा कहते थे, ‘ए साले होने की बात नहीं चाहिए'। इसलिए कुदरती रूप से साला नहीं बना। ऐसी तुमाखी वाला घर! साला ही नहीं। इनकी बुआ जी का जन्म हुआ उस दिन हमारे बुजुर्गों ने कहा, 'मर गए। इस घर में अब बेटी पैदा हो गई'। किसी के साले-वाले नहीं बने, ऐसे हैं ये लोग! फिर पूँछ सीधी रहेगी या टेढ़ी? एकदम टेढ़ी। साले के रूप में अपमान होने पर तय किया, नहीं चाहिए 'बहन'
मुझे भी बचपन से ही साला बनना पसंद नहीं था। कोई ऐसा कहे कि हमारे साले आए हैं, तो वह मरने जैसा लगता था। साले? इसे