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[10.6] अलग-अलग प्रकार के भय के सामने...
बच्चा जब छोटा होता है तब उसे भूत, साँप, बिच्छू और लुटेरों से भय लगता है, मरने से भय लगता है। इसी तरह बचपन में अंबालाल को भी भय था लेकिन उनमें यह विशेषता थी, वे भय का सामना करते थे। वास्तव में भय है या नहीं, किस कारण से भय लगता है, उसको जड़ में से ढूँढ निकालते थे। साथ-साथ उन्हें अपने आप पर श्रद्धा थी कि, 'मुझे कुछ भी नहीं हो सकता!' अंत में वे ढूँढ निकालते थे कि यह सब कल्पनाएँ ही हैं एक प्रकार की! किसी जगह के लिए ऐसी बात सुनी थी कि महुआ के पेड़ पर भूत रहते हैं और वहाँ भूत की ज्वालाएँ देखने को मिलती हैं। जाँच करने पर यह पता चला कि कोई व्यक्ति अंधेरी रात में बीड़ी जला रहा था और किसी जगह पर अँधेरे में कीकर के पेड़ का दूँठ था तो उसे भूत मान लिया। खुद का स्वभाव निडर था इसलिए सत्य ढूँढ निकाला।
[10.7] यमराज के भय के सामने खोज
उस ज़माने में पूरे हिन्दुस्तान में ऐसी मान्यता थी कि इंसान जब मरने लगता है तब यमराज उसका जीव लेने आते हैं। तब कुत्ता रोता है और यमराज भी आ जाते हैं, अब उस जीव को ले जाएँगे। फिर यदि उसने पाप किए होंगे तो यमराज मारते-मारते ले जाएँगे। ऐसी बातों से लोगों में भय घुस जाता, छोटे बच्चों को तो घबराहट हो जाती! तेरह साल की उम्र में अंबालाल को यमराज के भय से संबंधित सोच शुरू हो गई थी कि इसमें हकीकत क्या है?
फिर तो वे जगह-जगह जाँच करते गए। पंडितों से पूछा, ब्राहमणों से पूछा लेकिन सही बात जानने को नहीं मिली। खूब जाँच की, विचार करते रहे। अंत में पच्चीसवें साल में ढूँढ निकाला कि यमराज नाम का कोई जीव है ही नहीं, कोई देव भी नहीं है। यमराज नहीं है, परंतु नियमराज है। इस संसार को नियम ही चलाता है। यह जगत् नियम के अधीन ही है। अन्य कोई चलाने वाला नहीं है। नियम से जन्म होता है, नियम से मरते हैं, नियम से रात होती है, नियम
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