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से दिन उगता है; कुदरत का नियम ऐसा ही है! इस प्रकार वास्तविक ज्ञान उजागर करके लोगों को निर्भय बनाया।
[10.8] भगवान के बारे में मौलिक समझ
बचपन से उन्हें संसार बंधन रूप लगता था। उन्हें परवशता अच्छी नहीं लगती थी। वे स्कूल से छूट कर साधु संतों की सेवा करने जाते थे। तब एक महाराज ने उनकी सेवा से खुश होकर कहा कि 'भगवान तुम्हें मोक्ष में ले जाएगा'। तब उनकी विचारधारा शुरू हो गई कि 'भगवान अगर मुझे मोक्ष में ले जाएँगे तो भगवान मेरे ऊपरी रहेंगे, तब फिर उसे मोक्ष नहीं कह सकते। अतः भगवान और मोक्ष दोनों अगर एक साथ हैं तो वह विरोधाभास ही है। भगवान मेरे अंदर ही हैं, मुझे मिले नहीं हैं। वर्ना यदि भगवान मोक्ष दें तो उसे मोक्ष कहेंगे ही नहीं। मोक्ष अर्थात् जिसमें कोई ऊपरी नहीं हो, कोई अन्डरहैन्ड भी नहीं। खुद के ब्लंडर्स और खुद की मिस्टेक्स ही खुद के ऊपरी हैं। उन्हें खत्म कर देंगे तो हम अपने अंदर वाले भगवान के साथ अभेद हो सकेंगे।
[10.9] सच्चे गुरु की पहचान पहले से ही बचपन में गुरु से कंठी बंधवाई थी। कंठी टूट गई तो फिर से कंठी नहीं बंधवाई। मदर ने कहा कि लोग तुझे 'नुगरो' कहेंगे। उन्होंने कहा, 'भले ही कहें'। उनकी मान्यता थी कि, 'गुरु अर्थात् जो प्रकाश दें। जो मुझे प्रत्यक्ष ज्ञान नहीं दें, प्रकाश नहीं दें, वे गुरु मेरे काम के नहीं हैं'।
वे वैज्ञानिक व्यक्ति थे इसलिए शास्त्र में जो कुछ भी पढ़ते थे, उस बात को पूरी तरह से स्टडी करते थे और उसका सार निकाल लेते थे। शास्त्र में लिखी हुई बातों से आगे खुद के अंदर सूक्ष्म विवरण हो जाता था। लोकमत, लोकसंज्ञा से हमेशा उल्टा ही चले। अंत में अंदर वाले भगवान से पूछकर खुद की सूझ से आगे बढ़े।
[10.10 ] ज्ञानी के लक्षण बचपन से ही आठ-नौ साल की उम्र में भी बहुत स्ट्रोंग मिज़ाज था, और
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