Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रयमैचन्द्रिका टीका श० १ १०८ सू०५ मृगघातकक्रियास्वरूपनिरूपणम् २०७ एतादृश पुरुषेण कदाचित् तिस्रः क्रिया बद्धा भवन्ति इत्यर्थः ‘सियचउकिरिय' स्यात् चतुष्क्रियः कदाचित् चतस्रः क्रिया संपादिता भवेयुरित्यर्थः, “सियपंच किरिए ' स्यात् पंचक्रियः कदाचित् कायिक्याधारभ्य प्राणातिपातान्तपंचक्रियावान् भवति ‘से केणटेणं ' तत्केनार्थेन तत्र किं कारणम् येन तिस्रः, चतस्रः पंचापि क्रियास्तादृशपुरुषस्य बद्धा भवन्तीति । भगवानाह-'गोयमे' त्यादि 'गोयमा' हे गौतम ! 'जे भविए निसरणयाए ' यो भव्यः-वधकः निसर्जनतायै 'नो विद्धंसणयाएवि' नो विध्वंसनतायें अपि 'नो मारणयाए वि' नो मारणतायै अपि स 'तिर्हि' तिसृभिः, यावत्पर्यन्तं बाणं मृगमुद्दिश्य प्रक्षेपणाय धनुषि संयोजयति परन्तु मृगं न वेधयति न वा मारयति तावत्पर्यन्तं बाणं प्रक्षेप्तुमुद्यतस्य पुरुषस्य कायिकी आधिकरणिकी प्राद्वेषिकी, इति तिस्र एव क्रिया बद्धा भवन्तीत्यर्थः, 'जे सिय ति किरिए, सिय चउकिरिए, मियपंचकिरिए ) हे गौतम ! ऐसा वह पुरुष किसी अपेक्षा से तीन क्रियाओंवाला, किसी अपेक्षा से चार क्रियाओंवाला और किसी अपेक्षा से पांच क्रियाओंवाला माना जाता है। (से केणटेणं ? ) हे भदन्त ! आप ऐसा किस कारण से कहते हैं कि वह किसी अपेक्षासे तीन क्रियाओंवाला, किसी अपेक्षासे चार क्रिया
ओंवाला और किसी अपेक्षा से पांच क्रियाओंवाला माना जाता है ? (जे भविए णिसिरणयाए नो विद्धंसणयाए चिनो मारणयाए वि तिहिं) हे गौतम ! जो वह पुरुष जब तक सिर्फ बाण को फेंकनेके लिये क्रिया करता है मृग को घायल करनेकी तथा मृग को मारने की क्रिया नहीं करता है तब तक वह तीन क्रियाओं से युक्त होता है-अर्थात्-जब तक वह मृग को लक्ष्य कर छोड़ने के लिये बाण को धनुष के ऊपर चढाता है मृगको उस समय वह वेधता नहीं है और न मारता ही है-ऐसे बाण को चलाने में उद्यत हुए पुरुषद्वारा तब तक कायिकी, आधिकरणि पंचकिरिए ) 3 गौतम ! 5 अपेक्षा त त्र ठिया बागा, अपेक्षा यार ठियावाणी मन अपेक्षा पांय यावाणे ४ छ. (से केणणं०) હે ભગવન! આપ શા કારણે એવું કહે છે કે કેઈ અપેક્ષાએ તેને ત્રણ કિયાવાળો કેઈ અપેક્ષાએ ચાર કિયાવાળો અને કેઈ અપેક્ષાએ તેને પાંચ ठियावाणे ४वाय छ १ (जे भविए णिसिरणयाए नो विद्धंसणयाए वि नो मार. णयाए वि तिहिं ) हे गौतम ! न्यi सुधी ते पुरुष भृगने सक्ष्य परीने माणुने ફેંકવાને માટે ધનુષ પર ચડાવે છે. પણ જ્યાં સુધી મૃગને વીંધતા નથી તેમજ મારતા નથી ત્યાં સુધી તે પુરુષ કાયિકી, અધિકરણિકી અને પ્રક્રેષિકી, એ ત્રણ
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨