Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 1064
________________ १०१० भगवतीने गोयमा ! जीवेणं अणंताणं अभिाणबोहियणाणपजवाणं, एवं सुयणाणपज्जवाणं, ओहिणाण पज्जवाणं, मणपजवणाण पजवाणं केवलणाण पजवाणं, मइ अन्नाण पजवाणं, सुअअण्णाण पजवाणं, विभंगणाण पजवाणं, चखुदंसण-पजवाणं, अचक्खुदसणपजवाणं, ओहिदसणपजवाणं, केवलदंसणपजवाणं, उवओगं गच्छइ उवयोगलक्खणे णंजीवेसेए एटेणं, एवं वुच्चइ गोपमा ? जीवे णं स उहाणे जाव वत्तव्वं सिया ॥३॥ छाया--जीवः खलु भदन्त ! सोत्थानः सकर्मा सबला सवीर्यः स पुरुकारपराक्रमः आत्मभावेन जीवभावमुपदर्शयति, इति वक्तव्यम् स्यात् ? हन्त गौतम ! जीवः खलु सोत्थानः यावदुपदर्शयति इति वक्तव्यम् स्यात् तत् केनार्थेन जीवास्तिकाय उपयोग गुण वाला है-यह पहिले प्रकट किया जा चुका है। अब यह प्रकट किया जाता है कि जीवास्तिकाय का देशभूत एक जीव उत्थान आदि गुणवाला होता है-(जोवे णं भंते ! सउट्ठाणे) इत्यादि । सूत्रार्थ-( जीवे णं भंते ! सउहाणे, सकम्मे, सयले, सवीरिए, सपुरिसकारपरकमे) हे मदन्त ! उत्थानवाला, कर्मवाला, बलवाला, वीर्यवाला, और पुरुषकारपराक्रमवाला जीव (आयभावेणं) आत्मभावद्वारा (जीवभावं उवदंसेति इति वत्तव्वं सिया) जीवभावरूप चैतन्य को दिखाता है ऐसा वक्तव्य हो सकता है क्या ? (हंता गोयमा ! जीवे णं सउहाणे जाव જીવાસ્તિકાય ઉપગ ગુણવાળું હોય છે, એ વાત પહેલાં બતાવવામાં આવી છે. હવે એ સમજાવવામાં આવે છે કે જીવાસ્તિકાયના દેશરૂપ એક 04 अत्यान माह गुवानी जय छ- “ जीवेण भते ! सउट्ठाणे ' त्याल सूत्रा--" जीवे ण भते ! सउट्टाणे, अकम्मे, सबले, सवीरिए, सपुरिसकार परक्कमे" B Mera ! त्यानपानी, भवाणी, वाणी, वीयवाणी भने ५३५४२ ५२६भाग १ (आयभावेण) मामला दास (जीवभाव उपदसेंति इति वत्तव्य सिया) मा ३५ शैतन्य मता छ, म ४ी २४ाय શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨

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