Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 1096
________________ १०८२ भगवतीसूत्रे छाया - धर्मास्तिकायः खलु भदन्त ! कियान्महालयः प्रज्ञप्तः ? गोतम ! लोकः लोकमात्रः लोकप्रमाणको लोकस्पृष्टो लोकं चैव स्पृष्ट्रा खलु तिष्ठति एवमधoffer शो जीवास्तिकाय: पुद्गलास्तिकायः पश्चाऽपि एकाभिलापाः अधोलोकः खलु भदन्त ! धर्मास्तिकायस्य कियन्तं स्पृशति ? गौतम ! सातिरेकमधे धर्मास्तिकायादिक के प्रमाण का और स्पर्शना का विचारअनन्तर प्रकरण में कथित धर्मादिक द्रव्यों का कथन प्रमाण की अपेक्षा से अब सूत्रकार कहते हैं - ( धम्मत्थिकाए णं भते ! ) इत्यादि । सूत्रार्थ - ( धम्मत्थिकाए णं भंते ! के महालए पण्णत्ते ) हे भदन्त ! धर्मास्तिकाय कितना बडा कहा गया है ? ( गोयमा ) हे गौतम! ( लोए, लोयमेते, लोयप्पमाणे लोयफुडे, लोयं चेव फुसित्ताणं चिट्ठह ) वह धर्मास्तिकाय लोकरूप है, लोकमात्र है, लोकप्रमाण है, लोक स्पृष्ट है और लोकको स्पर्श करके रहा हुआ है । ( एवमहमत्थिकाए लोयागासे जीवस्थिकाए पोग्गलत्थिकाए पंच वि एक्काभिलावा ) इसी तरह अधर्मास्तिकाय, लोकाकाश, जीवास्तिकाय, पुद्गलास्तिकाय के विषय में भी जानना चाहिये । इन पांचों का एक ही जैसा अभिलाप है ( अहो लोए णं भंते ! धम्मत्थिकायस्स केवइयं फुसंति ) हे भदन्त ! अधोलोक धर्मास्तिकाय के कितने भाग का स्पर्श करता है ? (गोयमा ) हे गौतम! ( सातिरेगं अद्धं फुसइ) अधोलोक धर्मास्तिकाय के कुछ अधिक आधे ધર્માસ્તિકાય આદિના પ્રમાણ અને સ્પનાનું નિરૂપણ— પૂર્વ પ્રકરણમાં જે ધર્માદિક દ્રબ્યાની વાત કરવામાં આવી છે, તેમના प्रभानुं या प्रम्रणुभां सूत्रारे निश्णु यु ४ - ( धम्मत्थिकाए णं भंते ! ) हत्याहि सूत्रार्थ – ( धम्मत्थिकाए णं भंते ! के महालए पण्णत्ते ? ) हे लहन्त ! धर्मास्तिमय डेंटलुं भोटु होय छे ? ( गोयमा ! ) डे गौतम ! (लोए, लोयमेत्ते, लोयप्पमाणे, लोयफुडे, लोयं चैव फुसित्ताणं चिट्ठइ ) ते धर्मास्तिमय सोउ३५ छे, सोम्भात्र छे, बोऽप्रभाणु छे, सोउस्पृष्ट छे, भने बोउने स्पर्शाने रडेलुं छे. ( एव महम्मत्थकाए कोयागासे जीवत्थिकाए पोग्गलत्थिकाए पंच वि एक्का भिलावा ) मे પ્રમાણે ધર્માસ્તિકાય, લેાકાકાશ, જીવાસ્તિકાય, અને પુદ્ગલાસ્તિકાયના વિષયમાં પણ વક્તવ્ય ( કથન) સમજવું. એટલે કે માંચનું વણૅન સરખું' જ સમજવું. ( अहोलोए णं भंते ! धम्मत्थिकायस्स केवइयं फुसंति १ ) डे लहन्त ! अधोलो धर्मास्तिडायना डेंटला लागना स्पर्श पुरे हे १ ( गोयमा ! ) हे गौतम ! ( साति रेगं अर्द्ध फुसइ) अधोसोउ धर्मास्तिआयना अर्ध कुश्ती वधारे लागना स्पर्श શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨

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