Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
२०७८
भगवती सूत्रे
1
भदन्त ! ' किं जीवा पुच्छा तह चैत्र तथा चैव यथा लोकाकाशे प्रश्नः कृतः तथा rataratasपि प्रश्न ज्ञातव्यस्तथाहि 'अलोगागासे णं भंते किं जीवा जीवदेसा जीवप्पएसा अजीना अजीवदेसा अजीवप्पएसा " एवं रूपेणालोकाकाशविषयकः पूर्ववदेव प्रश्नः । एतेषां षण्णामपि निषेधं कुर्वन्नेव भगवानाह - 'गोयमा ' इत्यादि ' गोयमा ' हे गौतम! ' नो जीवा जाव नो अजीवप्पएसा ' नो जीवाः यावत् नो अजीवमदेशाः हे गौतम! योऽयमलोकाकाशः स जीवानां तद्देशानां तत्मदेशानामजीवानां तद्देशानां तस्मदेशानां नास्ति आधार इत्यर्थः अत्र यावत्पदेन जीव देशप्रदेशाजीव तद्देशतत्प्रदेशानां संग्रहो भवतीति । यदि अलोकाकाशो न जीवादीनामाधारभूतस्तदा किं स्वरूपस्तत्राह - 'एगे' इत्यादि । 'एगे अजीव दव्त्रदेसे' एकोऽजीवद्रव्यदेशः अलोकाकाशस्य देशत्वं लोकाकाशद्रव्यस्य भागभी जीव और अजीवादि को लेकर पहिले लोकाकाशो की तरह ६ छह प्रश्न कर लेना चाहिये - वे इस प्रकार से- (अलोगागासे णं भंते । किं जीवा, जीवदेसा, जीवप्पएसा, अजीवा, अजीवदेसा, अजीवपएसा, ? हे भदन्त ! अलोकाकाश में जीव, जीवदेश, जीवप्रदेश, अजीव, अजीवदेश और अजीवप्रदेश हैं क्या ? इसका उत्तर देते हुए प्रभु गौतम से कहते हैं (गोयमा !) हे गौतम! (नो जीवा जाव नो अजीवपएसा ) अलोकाकाश में न जीव के देश हैं, न जीव के प्रदेश हैं, न अजीव हैं, न अजीव के देश हैं और न अजीब के प्रदेश भी हैं। यहां ( यावत् ) पद से जीवदेश तत् प्रदेश, अजीवदेश और तत् प्रदेश इनका संग्रह हुया है। प्रश्न- यदि अलोकाकाश जीवादिक द्रव्यों का आधारभूत नहीं है तो फिर वह किं स्वरूप हैं -! समा धान - ( एगे अजीब दव्व देसे) वह अलोकाकाश एक अजीवद्रव्यदेशरूप है। यहाँ जो अलोकाकाश में अ
અજીવ આર્દિ છે કે નહી' અહી' પણ લેાકાકાશને વિષે જે ૬ છ પ્રશ્નો આગળ पूछया के मेन मोअअश विषे पूछवा लेभे ते प्रश्नी या प्रमाणे छे- (अलोगागासे ण भंते! कि जीवा, जीवसा, जीवपएसा, अजीवा, अजीवदेसा, अजीव परसा ૩ ભદ્દન્ત ! આલેકાકાશમાં જીવ જીવદેશ,જીવ પ્રદેશ, અજીવ,અજીત્રદેશ અજીવપ્રદેશ होय छे नही १ ( गोयमा ) डे गौतम ! ( नो जीवा जाव नो अजीव परसा ) ના, અલાકાકાશમાં જીવદ્રવ્યા નથી, જીવદેશ નથી, અજીદ્રશ્ય નથી અજીવદેશ नथी अनुवप्रदेश नथी अडी (जान) (पर्यन्त) पहथी लवहेश कुत्रप्रदेश, अत्र, અજી દેશ અને અજીત્રપ્રદેશ ગ્રહણુ કરાયા છે.
પ્રશ્નઃ—જો આલેાકાકાશ જીવાદિકદ્રવ્યાના २१३५ देवु छे !
આધારરૂપ ન ાય તે તેનું
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨