Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 1074
________________ २०६० भगवतीसरे मुत्थानादि - आत्मभावेनोपदर्शयति । स तेणटेणं - एवं बुच्चइ गोयमा । अनेनार्थेन एवमुच्यते गौतम ! 'जीवेणं स उट्ठाणे जाव-वत्तव्यं सिया' जीवः रक्लु सोत्थानो यावत् वक्तव्यं स्यात् अत्र यावत्पदेन 'स कम्मे ' इत्यारभ्य 'जीवभाव उवदंसेति' एतत्पर्यन्तस्य ग्रहणं भवतीति भावः ॥ सू० ३ ॥ ___ अथाकाशनिरूपणम्-अनन्तरपूर्वः प्रकरणे जीवस्य विचारः कृतः सच जीवः आकाशाधार इति जीवाऽऽकाशनिरूपणायाह-" कइ विहेणं " इत्यादि । मूलम्-कइविहेणं भंते ! आगासे पण्णत्ते, गोयमा! दुविहे आगासे-पण्णत्ते-तं जहा लोयागासे य अलोयागासे य, लोयागासे णं भंते ! किं जीवा. जीवदेसा, जीवप्पएसा. अजीवा, अजीवदेसा, अजीवप्पएसा, गोयमा ! जीवावि, जीवदेसावि, जीवप्पएसावि, अजीवावि, अजीवदेसावि, अजीवप्पएसावि, जे जीवा ते नियमा एगेंदिया, बेइंदिया, तेइंदिया, चउरिदिया, पंचिंदिया, अणिदिया, जे जीवदेसाते नियमा एगिदियदेसा, जेणं जोवे से एएणद्वेणं) जीव का लक्षण उपयोग है-ज्ञान है क्यो कि इसके द्वारा ही वह वस्तुपरिच्छेद के प्रति व्यापृत किया जाता है-इस कारण वह उपयोग स्वरूप जीव भाव को उत्थान आदि आत्मभाव द्वारा प्रकट करता है। (तेणदेणं एवं बुचा जीवेणं सउहाणे जाव वत्तव्वं सिया) इस कारण ऐसा कहा है कि उत्थानक्रिया वाला जीव यावत् जीव भाव को प्रकट करता है ऐसा कहा जा सकता है। यहां यावत् पद से (सकम्मे) यहां से लेकर ( जीवभावं उवदंसेति) यहां तक का पाठ प्र. हण किया गया है । सू०३ ॥ समाधान--( उवओगलक्खणे णं जीवे से एएणडेण') पर्नु सक्ष ઉપગ છે-જ્ઞાન છે-કારણ કે તેના દ્વારા જ તેને વધુ પરિચછેદ તરફ પ્રવૃત્ત કરાય છે-તે કારણે વે ઉપગરૂપ જીવભાવને ઉથાનાદિ આત્મભાવ દ્વારા પ્રકટ ४२ छ. ( तेणटेणं एवं बुच्चइ जीवेणं सउटाणे जाव वत्तव्य सिया ) ४॥२णे એવું કહ્યું છે કે ઉત્થાનાદિ કિયાવાળે જીવ પિતાના પરિણામે દ્વારા જીવભા १३५ चैतन्य घट ४२ छे. मी ( यावत् ) ( पर्यन्त) ५४थी ( सकम्मे ) थी सधन (जीवभावं उपदंसेति) पर्यन्त सूत्र ५४ अप ४२वामा माया छ.॥सू. 3॥ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨

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