Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
२०५४
भगवती उपदर्शनं प्रकाशस्तथा च प्रकाशयति इति वक्तव्यं स्यात् विशिष्टाया उत्थानादि क्रियाया विशिष्टज्ञानपूर्वकखनियमात् । दृश्यते च ज्ञानतारतम्येन क्रियासु तारतम्यमिति गौतमस्य प्रश्नः भगवानाह-'हंता' इत्यादि । "हंता गोयमा" हन्त गौतम ! "जीवे णं जाव उवदंसेतीति वत्तव्य सिया" जीवः खलु यावदु. पदर्शयतीति वक्तव्यं स्यात् अत्र यावत्पदेन उत्थानादारभ्य जीवभावमित्यन्तं प्रश्नोक्तं सर्वमेव संग्राह्यम् उत्थानादिकं सर्वम् जीव आत्मभावेनोपदर्शयतीति भावः द्वारा (जीवभावं उवदंसेति) चैतन्यरूप जीव भाव को प्रकाशित करता है-प्रकट करता है ऐसा (वत्तवं सिया) कहा जा सकता है क्या ? तास्पर्य-इस प्रश्न का यही है कि विशिष्ट उत्थान आदि क्रियाएँ विशिष्टः ज्ञानपूर्वक ही होती हैं ऐसा नियम है। यह बात प्रत्यक्ष देखने में आती है कि जहां पर ज्ञान की तरतमता होती है वहां पर क्रियाओं में भी तर तमता पाई जाती है । अतःइन क्रियाओं आदिकी तरतमता से जीव अपने विशिष्ट चैतन्य का प्रकाशन करता है-यदि ऐसा माना जावे तो इसमें कोई बाधा तो नहीं है-ऐसा यह प्रश्न प्रभु से किया है । इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-(हंता गोयमा! जीवेणं जाव उवदंसेतीति वत्त. व्वं सिया) हां गौतम! उत्थानादि विशेषणों वाला जीव अपने परिणामों बारा चैतन्यरूप भाव को प्रकाशित करता है-ऐसा मानने में कोई बाधा नहीं है। यहां यावत्पद से उत्थान से लेकर जीवभावतक के सब पद ग्रहण किये गये हैं। जीव आत्मभाव द्वारा अपने भाव को-चैतन्य को
५४८ ४२ छ, स ( वत्तव्व सिया) ४ही सय ५३ ? वे १४२ प्रश्न તાત્પર્ય સમજાવે છે–વિશિષ્ટ ઉત્થાન આદિ ક્રિયાઓ વિશિષ્ટ જ્ઞાન પૂર્વક જ થાય છે એ નિયમ છે. એવું પ્રત્યક્ષ જોવામાં આવે છે કે જ્યાં જ્ઞાનની અધિક્તા હેય છે ત્યાં ક્રિયાઓમાં પણ અધિક્તા હોય છે. તેથી તે ક્રિયાઓ આદિની તરતમતાથી (અધિકતાથી) જીવ પિતાના વિશિષ્ટ ચિતન્યને પ્રકટ કરે છે–એવું જે માનવામાં આવે તે કઈ પણ વાંધો નથી. આ પ્રકારનું મંતવ્ય યોગ્ય છે કે નહીં, એ ગૌતમ સ્વામીના પ્રશ્નને ભાવાર્થ છે. तन हत्त२ महावीर प्रभु नीचे प्रमाणे माछ-(हंता गोयमा ! जीवेण जाव अवदसेतीति वत्तव सिया) गौतम! डा, अत्यानादि विशेषणेथी युतिल પિતના પરિણામે દ્વારા ચૈતન્યરૂપ ભાવને પ્રકટ કરે છે- અવું માનવામાં કઈ ५५ ७२४त नथी. मी ( यावत् ) ( ५५न्त) ५४थी उत्थानथी सन १ ભાવ સુધીના પદ ગ્રહણ કરવામાં આવ્યા છે. જીવ આત્મભાવ દ્વારા પિતાના
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨