Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 1065
________________ ममैयचन्द्रिका टीका श० २ उ० १० १० ३ उत्थानादिस्वरूपनिरूपणम् १०५१ यावद् वक्तव्यं स्यात् ? गौतम ! जीवः खलु अनन्तानामाभिनिवोधिकज्ञानपर्यवाणाम् । एवं श्रुतज्ञान पर्यवाणाम् अवधिज्ञान पर्यवाणाम् मनः पर्यवज्ञानपर्यवाणाम् केवलज्ञानपर्यवाणाम् , मत्यज्ञानपर्यवाणाम् , श्रुतज्ञानपर्यवाणाम् , विभंगज्ञानपर्यवाणाम् , चक्षुर्दर्शनपर्यवाणाम् , अवक्षुदर्शनपर्यवाणाम् , अवधिदर्शनपर्यवाणाम् , उवदंसेतीति वत्तव्वं सिया) हां गौतम ! उत्थान आदि विशेषणों वाला जीव यावत् जीवभावरूप चैतन्य को दिखाता है ऐसा वक्तव्य हो सकता है। (सेकेणटेणं जाव वत्तव्वं सिया) हे भदन्त ! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं कि उत्थान आदि विशेषणों वाला जीव आत्मभाव द्वारा जीवभावरूप चैतन्य को दिखाता है ऐसा वक्तव्य हो सकता है। (गोयमा) हे गौतम ! (जीवे णं अणंताणं आभिणिबोहियणाणपत्रवाणं, एवं सुयणाणपजवाणं, ओहिणाणपजवाणं, मणपजवणाणपज्जवाणं, केव. लणाणपज्जवाणं) जीव अभिनियोधिक ज्ञान की अनन्तपर्यायों के इसी तरह श्रुतज्ञान की अनन्त पर्यायों के, अवधिज्ञान की अनन्तपर्यायों के, मनः पर्ययज्ञान की अनन्त पर्यायों के केवल ज्ञान की अनन्त पर्यायों के (मइ अन्नाणपज्जवाणं, सुय अण्णाणपज्जवाणं, विभंग अन्नाणपज्ज. पाणं,) मत्यज्ञान की अनन्तपर्यायोंके, श्रुत अज्ञान की अनन्तपर्यायों के, विभंग अज्ञान की अनन्त पर्यायों के, (चक्खुदंसणपज्जवाणं, ५३ ? (हंता गोयमा!जीवे ण स उटाणे जाव उवदसेतीति वत्तव्य सिया) डे गौतम ! હા, ઉત્થાન આદિ વિશેષણવાળે જીવ આત્મભાવરૂપ ચૈતન્ય બતાવે છે, એવું કહી शाय छे. (से केणटेणं जाव वत्तव्वं सिया) 3 महन्त ! मा५ ॥ २णे ४। છે કે ઉત્થાન આદિ વિશેષણવાળે જીવ આત્મભાવદ્વારા જીવભાવરૂપ ચિતન્ય બતાવે छ, मे ४डी शय छ १ (गोयमा ! ) 3 गौतम ! ((जीवे ण अणवाणं आभि. णियोहियणाणपज्जवाण एव सुयणाणपज्जवाण ओहिणाणपज्जवाण', मणपज्जवणा ण. पज्जवाण', केवलणाणपज्जवाण) ७१ मलिनिमाथि शाननी मनात पर्यायाना એજ પ્રમાણે શ્રુતજ્ઞાનની અનંત પર્યાયેના, અવધિજ્ઞાનની અનંત પર્યાયેના, भनः पयज्ञाननी सनात पर्यायाना, उपसज्ञाननी मनंत पयायोना, (मइ अन्नाणपज्जवाण', सुय अण्णाणपज्जवाण', विभंगअन्नाणपज्जवाण) भति शा. નાની અનંત પર્યાના, કૃત અજ્ઞાનની અનંત પર્યાના, વિભંગ અજ્ઞાનની मनात पर्यायाना ( चक्खुदसणपज्जवाण, अचक्खुदसणपज्जवाण', ओहिदसणपज्जवाणं) यक्षुश ननी मनात पर्यायाना, मयनशननी मन पयायोना, भवविशननी मनात पर्यायान। ( केवलईसणपज्जवाण) मने पानी अनत पयायोना ( उवओगं गच्छद) योगने पास ४२ छ. ( उवओग लकवणे શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨

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